रेल मंत्रालय कर चुका स्वीकृत फिर भी विचाराधीन?
रेलवे मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने 12 फरवरी 2024 को अंब्रेला वर्क 2023-24 के फेस-2 के अंतगर्त सूरतगढ़ रेलवे स्टेशन पर वंदे भारत सहित अन्य ट्रेनों के रखरखाव के अनुरूप वाशिंग लाइनों तथा कोच मैंटेनेंस डिपो निर्माण कार्य स्वीकृत करते हुए 74.89 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति जारी की थी। जिसके बाद इस कार्य को रेलवे की गतिशक्ति यूनिट को भी आवंटित जा चुका है।उल्लेखनीय है कि रेल विकास संबंधित कार्य का प्रस्ताव सर्वप्रथम संबंधित डिवीजन की ओर से उत्तर पश्चिम रेल जोन को भेजा जाता है। जिसके बाद इस प्रस्ताव पर रेलवे बोर्ड पर गहनता से विचार करता है। इसके बाद रेलवे बोर्ड अध्यक्ष प्रस्ताव को अनुमोदित करते हुए रेल मंत्री को स्वीकृति के लिए प्रेषित करते हैं। सूरतगढ़ में वाशिंग लाइन व कोच मेंटेनेंस डिपो का प्रस्ताव भी स्वयं जीएम की सहमति के बाद ही रेलवे बोर्ड व रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की ओर से स्वीकृत किया गया था।
ऐसे में सवाल यह है कि रेल मंत्रालय से स्वीकृत प्रोजेक्ट, जिस पर बजट भी जारी हो चुका है, वह रेलवे बोर्ड में पुन: विचाराधीन कैसे हो सकता है। यह सीधे तौर पर रेलवे बोर्ड की विवेकशीलता और निर्णय पर ही सवाल खड़े करता है। रेल विशेषज्ञों की मानें तो, पुनर्विचार केवल उसी प्रोजेक्ट पर किया जाता है, जिस पर संबंधित जोन आपत्ति उठाए। नागरिकों का कहना है कि जोन को आपत्ति थी तो, प्रोजेक्ट को पहले अनुमोदित ही क्यों किया।
लालगढ़ में शिफ्ट होगा कोच डिपो !
पिछले कई माह से सूरतगढ़ में स्वीकृत वाशिंग लाइन व कोच मेंटेनेंस डिपो निर्माण कार्य को लालगढ़ शिफ्ट करने की अटकलें लगाई जा रही थी। जीएम ने अपनी विजिट के दौरान अप्रत्यक्ष रूप से इन संभावनाओं को बल दिया।जीएम ने वाशिंग लाइन निर्माण पर प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि भारतीय रेल पिट लाइनों का निर्माण रेल अनुरक्षण व संचालन के मद्देनजर करता है। उन्होंने कहा कि वाशिंग लाइन की आवश्यकता लालगढ़ जैसे स्टेशनों के लिए अधिक है। उन्होंने पिट लाइन बनाने के लिए संबंधित स्टेशन पर रेलवे की खुद की लेबर भी होनी चाहिए, जो सूरतगढ़ में नहीं है। हालांकि जीएम के इस बयान पर भी कई सवाल उठ रहे हैं।
रेल जिला संघर्ष समिति जिलाध्यक्ष ललितकिशोर शर्मा ने बताया कि सूरतगढ़ में पूर्व में कई दशकों तक मीटरगेज वाशिंग व डिपो रहा था। यदि रेलवे लेबर एक मुद्दा है तो, कहीं भी नई पिट लाइनों व कोच डिपो का निर्माण ही संभव नहीं है। क्योंकि रेलवे के पुराने डिपो तक में पर्याप्त कर्मचारी नहीं है और नई भर्तियां भी नाममात्र पदों पर ही होती हैं।