script‘बधाई नहीं, अब पढ़ाई पर जोर’ | going towards study of children for better future | Patrika News

‘बधाई नहीं, अब पढ़ाई पर जोर’

locationश्री गंगानगरPublished: Jul 17, 2018 09:11:41 pm

Submitted by:

vikas meel

https://www.patrika.com/rajasthan-news

photo

photo

-किन्नरों में आ रही बदलाव की बयार

-किन्नरों के डेरों में आ रहे नए बच्चों को जोड़ा जा रहा पढ़ाई से
श्रीगंगानगर.

किन्नरों का नाम आते है जेहन में उभरती है घरों में खुशियां आने पर बधाइयों मांगने वाले एक समुदाय की तस्वीर। एक ऐसा समुदाय जिसे सामान्य दुनिया से अलग माना गया। उनकी पढ़ाई लिखाई पर किसी का ध्यान ही नहीं गया। इक्का-दुक्का किन्नर ने भले ही स्कूल की शिक्षा अपने दम पर पूरी की हो, बाकी किन्नर समुदाय के अधिकांश लोगों की जिंदगी तालियों से शुरू होकर शृंगार और घरों नाचने-गाने तक आकर खत्म हो जाती है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब आ रही है बदलाव की बयार। एक ऐसा बदलाव जिसमें किन्नर समुदाय अपने यहां आने वाले नए बच्चों को बधाई की बजाय पढ़ाई की ओर ले जा रहा है। उनका कहना है कि अब सरकार ने इतनी योजनाएं दे दी हैं कि किन्नर समुदाय अगर पढ़ लिख गया तो बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हो सकता है।

 

हम पढ़ा रहे हैं बच्चों को
पंजाब से आए किन्नर प्रवीण बाबा ने बताया कि उनके साथ एक बच्ची बिन्नी आई है। वे उसे बधाई पर नहीं ले जा रहे बल्कि उसे पढ़ा लिखाकर कुछ बनाना चाहते हैं। वे चाहती हैं कि उनकी बच्ची अब बधाई के काम की बजाय पढ़ लिखकर बड़ी जिम्मेदारी निभाए। इसके लिए वे जहां तक संभव होगा उसे पढ़ाएंगे। वे बताती हैं कि पंजाब और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के इलाके में तो अब किन्नरों में यह बदलाव आ रहा है। उन्होंने बताया कि असम और बंगाल में हमारे समुदाय से अधिकारी तक बने हैं।

 

‘मैं पढ़ी, क्योंकि गुरु मां ने स्कूल भेजा’
फरीदाबाद की किन्नर एकता जोशी का कहना था कि वे काफी समय बारहवीं तक पढ़ी हैं। उस समय पढ़ाई का चलन नहीं था लेकिन उन्हें इसलिए स्कूल भेज दिया गया क्योंकि उनकी गुरु मां अनीता जोशी उन्हें स्कूल भेजने के लिए पे्ररित करती थीं। वे बताती हैं कि उनके डेरे पर आने वाले बच्चे भी पढ़ें लेकिन हमारे यहां की बधाई की परम्परा को भी छोड़े नहीं।

 

कई राज्यों में किन्नर बने अधिकारी
जम्मू से आई बाईस किन्नर डेरों की प्रमुख हाजी मियां सायरा बताती हैं कि बच्चों को पढ़ाना अच्छी बात है। उनके डेरे पर चार बच्चे हैं। इनमें से एक तो नवजात है जबकि तीन स्कूल जा रहे हैं। उन्हें पढ़ानें के लिए हमने कानूनी लड़ाई लड़ी। अब वे बच्चे पढ़ रहे हैं। हम इन बच्चों अधिकारी तक बनाने के लिए प्रयास करेंगे। इसके लिए हम पूरी मेहनत से प्रयास करेंगे।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो