scriptजयकारा वीर बजरंगी-हर-हर महादेव के साथ शुरू होती है गोसेवा | Goseva begins with Jaikara Veer Bajrangi-Har-Har Mahadev | Patrika News

जयकारा वीर बजरंगी-हर-हर महादेव के साथ शुरू होती है गोसेवा

locationश्री गंगानगरPublished: Jan 06, 2022 02:45:22 am

श्रीगंगानगर. जयकारा वीर बजरंगी, हर-हर महादेव का जोरदार जयघोष होता है और इसी के साथ सेवादार गोवंश को चारा डालने की सेवा में जुट जाते हैं। गोवंश को सामूहिक रूप से चारा डालने का यह काम बड़ा रोमांचकारी होता है लेकिन उतना ही खतरनाक भी है। बड़े-बड़े सीगों वाले गोवंश के बीच खुद को बचाते हुए सेवादार जिस सावधानी एवं शिद्दत से अपने काम को अंजाम देते हैं, वह वाकई दिलेरी वाला काम है। सेवादारों का काम चारा देखकर बेकाबू गोवंश न केवल नियंत्रित करना होता है बल्कि खुद को बचाते हुए उनको चारा डालना भी होता है।

जयकारा वीर बजरंगी-हर-हर महादेव के साथ शुरू होती है गोसेवा

जयकारा वीर बजरंगी-हर-हर महादेव के साथ शुरू होती है गोसेवा

महेन्द्र सिंह शेखावत. श्रीगंगानगर. जयकारा वीर बजरंगी, हर-हर महादेव का जोरदार जयघोष होता है और इसी के साथ सेवादार गोवंश को चारा डालने की सेवा में जुट जाते हैं। गोवंश को सामूहिक रूप से चारा डालने का यह काम बड़ा रोमांचकारी होता है लेकिन उतना ही खतरनाक भी है। बड़े-बड़े सीगों वाले गोवंश के बीच खुद को बचाते हुए सेवादार जिस सावधानी एवं शिद्दत से अपने काम को अंजाम देते हैं, वह वाकई दिलेरी वाला काम है। सेवादारों का काम चारा देखकर बेकाबू गोवंश न केवल नियंत्रित करना होता है बल्कि खुद को बचाते हुए उनको चारा डालना भी होता है। बीच-बीच में जयकारे लगाकर सेवादार एक दूसरे में जोश भरते रहते हैं। यह दुश्कर काम एक ट्रेक्टर ट्रॉली की मदद से किया जाता है। सुखाडिय़ा सर्किल स्थित श्री गोशाला में गोवंश को चारा हमेशा इसी तर्ज पर डाला जाता है। हरे चारे से भरे कट्टों को ट्रेक्टर ट्राली में जमा कर लिया जाता है। इसके बाद नंदीबाड़े में टे्रक्टर ट्रॉली को ले जाया जाता है। दो सेवादार ट्रेक्टर से आगे लाठियों से गोवंश को नियंत्रित करते हैं जबकि दो सेवादार ठाण (खुरली) में बारी-बारी से कट्टों से खाली करते हैं। ट्राली में बैठे सेवादार कट्टों को ठाण वाले सेवादार को थमाते हैं। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। ट्रेक्टर ट्राली पूरे नंदीबाड़े में घूमता हैं। ट,्रेक्टर को देखकर गोवंश एक बार तो बेकाबू होता है लेकिन जैसे जैसे ठाण में चारा डलता है वो अनुशासित होकर कतारबद्ध चरने लग जाता है। वैसे गोशाला में लोग खुद भी चारा, रोटी आदि लेकर जाते हैं लेकिन उनके लिए रैंप है जहां खड़े होकर वो ठाण में डाल देते हैं लेकिन सामूहिक रूप से चारा डालने के लिए ट्रेक्टर ट्राली की मदद ली जाती है। चारे लेकर गोशाला जाने वाले लोगों की अलसुबह ही कतार लग जाती है। रिक्शों के माध्यम से भी हरे चारे के कट्टे लाए जाते हैं।
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रोज सुबह निशुल्क-निस्वार्थ सेवा
गोवंश की सेवा करने वाले यह सेवादार गोशाला के नहीं हैं बल्कि शहर के प्रतिष्ठित लोग हैं, जो रोज सवेरे यहां आकर एक डेढ़ घंटे सेवा देते हैं। यह सेवा एकदम निशुल्क होती हैं। निस्वार्थ भाव से गोसेवा करने वाले इन सेवाभावी लोगों ने अलग-अलग नंदीबाड़ों की जिम्मेदारी संभाल रखी है। गोशाला के 18 बाड़ों में दो सौ ज्यादा निशुल्क एवं निस्वार्थ भाव से सेवा देते हैं। सोमनाथ खुराना, दलीप बोरड़, अशोक कांडा, राजीव सोनी, नवीन परनामी, ललित कंसल, हरीश सचदेवा, ओमप्रकाश डाबी, धीरज गर्ग, रवि सोनी, संदीप अनेजा, पंकज अनेजा, सूर्यकांत शर्मा, प्रेम खुराना, भरत सोनी, प्रवीन सेठी, अतुल सेठी, विनय गोयल, राजेश गुप्ता, एडवोकेट गोकुल सेवा, रमेश शेरेवाला, पवन सरावगी, आसाराम, जितेन्द्र जैन, पिंटू सिंगल जैसे बहुत से नाम हैं।
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परिंदों की शरणस्थली
श्री गोशाला न केवल गोवंश का शरणस्थली है बल्कि यहां दिनभर हजारों पक्षी भी दाना चुगने आते हैं। छोटे स्तर पर शुरू हुआ यह काम अब वृहद स्तर पर होने लगा है। जनसहयोग जुटाने के लिए गोशाला के अंदर बाकायदा सूचना भी लगा रखी है, जिसमें बताया गया है कि गोशाला में लगभग एक हजार फुट की छत है जिस पर परिंदे दाना चुगते हैं। यह छत का पूर्ण निर्माण करवाया जाना प्रस्तावित है, क्योंकि कई जगह छत जर्जर है, जहां पानी भरता है, इससे दाना खराब होता है। छत के नवनिर्माण के लिए गोसेवकों से मदद का आह्वान किया गया है। वैसे वर्तमान में यह आठ से दस हजार कबूतर और कौवे दिन भर दाना चुगते हैं। छत पर दिवंगत पक्षी प्रेमी बालकिशन तनेजा का बड़ा सा फोटो भी लगा है। तनेजा भी परिंदों को नियमित दाना डालते यहां आते थे। वर्तमान में परिंदों के दाना पानी की व्यवस्था का जिम्मा सोमनाथ खुराना ने संभाल रखा है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन करीब छह क्विंटल दाना परिंदों को डाला जा रहा है। और उसमें दानदाताओं का सहयोग भी मिल रहा है।
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सर्दी के मौसम में होती है दिक्कत
सर्दी के मौसम में गोवंश को बड़ी परेशानी होती है। मूत्र एवं गोबर के कारण उनको बैठने के लिए सूखी जगह नही मिल पाती। धूप कम निकलने से यह समस्या गहरा जाती है। हालांकि ट्रेक्टर से गोबर को हटा दिया जाता है फिर भी कीचड़ बना रहता है। खेतों में बुवाई होने के कारण इन दिनों गोबर की खाद की खपत भी कम होती है। इस कारण गोशाला में कई जगह गोबर के ढेर लगे हैं। सर्दी से बचाव के लिए तिरपाल बांधे हुए हैं। वैसे गायों की श्रेणी के हिसाब से भी यहां व्यवस्था की गई है। घायल एवं बीमार गोवंश के लिए अलग बाड़ा है। वहां हीटर एवं गर्म कपड़े आदि का प्रबंध है। ब्याही हुई गायों का बाड़ा अलग है।
हरा चारा, गुड और सवामणी
गोवंश की सेवा में सेवाभावी लोग हरा चारा, गुड़ आदि के साथ-साथ
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हरा चारा, गुड और सवामणी
गोवंश की सेवा में सेवाभावी लोग हरा चारा, गुड़ आदि के साथ-साथ सवामणी का प्रसाद भी करते हैं। सवामणी में दलिया या बाजरी, गुड़ व सरसों का तेल शामिल किया जाता है। इसको तैयार करने में पूरा दिन लग जाता है। जिसको सवामणी करनी होती है उसको एक दिन पहले बुकिंग करवानी होती है। गोशाला के अंदर की दो बडे कडाहों में सवामणी को तैयार किया जाता है। गोसेवकों की ओर से गोवंश के लिए शीतमहायज्ञ करवा जाता है। इसके माध्यम से गुड़ एकत्रित करने का आह्वान किया जाता है। पिछले साल शीतमहायज्ञ के जरिये छह सौ कार्टन गुड़ एकत्रित किया गया था। इस बार भी गोसेवकों से आह्वान किया गया है। एकत्रित गुड़ सर्दी के मौसम में गोवंश को खिलाया जाता है।
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