सूरतगढ़. सूरतगढ़ रेलवे स्टेशन पर अगर आप किसी आपराधिक घटना के शिकार हो जाये तो जीआरपी से मदद की बिलकुल उम्मीद न करें। इसका कारण है कि पहले से स्टाफ की कमी से जूझ रही जीआरपी पर चुनाव ड्यूटी भारी पड़ रही है। सूरतगढ़ रेलवे जंक्शन सहित 16 स्टेशनों की जिम्मेदारी संभालने वाली जीआरपी इन दिनों मात्र एक हैड कांस्टेबल के भरोसे चल रही है। शेष स्टाफ चुनाव ड्यूटी निभा रहा है। ऐसे में एकमात्र हैड कांस्टेबल को चौकी में कागजी कार्रवाई, मुल्जिमों की पेशी और परिवाद लेने पड़ रहे हैं।
लेकिन इतने लंबे चौड़े स्टेशन का काम एकमात्र सिपाही को संभालना भारी पड़ रहा है। जांच या पेशी पर जाने पर स्टेशन पर परिवाद लेने वाला कोई नहीं होता या कहें कि चौकी पर ताला लग जाता है। उल्लेखनीय है कि सूरतगढ़ रेलवे स्टेशन न केवल A श्रेणी का महत्वपूर्ण बड़ा रेलवे जंक्शन है बल्कि सामरिक तौर पर भी संवेदनशील है। पिछले तीन दशकों में स्टेशन का बेतहाशा विस्तार व दर्जनों नई रेलगाड़ियों का संचालन हुआ है जो कि लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
इसके बावजूद स्टेशन पर तीन दशक पहले स्थापित जीआरपी चौकी को क्रमोन्नत कर थाना बनाना तो दूर स्टाफ के पूरे पद तक नही भरे जा रहे हैं। यहां हैड कांस्टेबल सहित कुल छह जवानों के पद सृजित हैं जो कि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। कोढ़ में खाज यह है कि इनमें आधे पद खाली चल रहे हैं। इसके बावजूद जीआरपी पुलिस ने स्थानीय चौकी के तीन जवानों की ड्यूटी चुनाव में लगा रखी है। जिससे वर्तमान में यहां केवल हैड कांस्टेबल ही मौजूद है। इसके चलते स्टेशन की सुरक्षा पर भी प्रश्न उठ रहे हैं।