इसमें निराश्रित पशुओं को शहर के हर वार्ड और मुख्य मार्गों पर विचरण के लिए छोड़े जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाइ्र्र और पशुओं को पकड़कर गोशालाओं में रखने की व्यवस्था नहीं लागू नहीं किए जाने के साथ साथ जिला स्थायी लोक अदालत के आदेश की पालना नहीं किए जाने की बात कही है।
याचिकाकर्ता का कहना था कि नगर परिषद प्रशासन और जिला प्रशासन ने कैटल फ्री सिटी के लिए प्रयास नहीं किए। यहां तक कि यातायात पुलिस को भी यातयात में बाधक बन रहे पशुओं के बारे में सूचना देने के लिए पाबंद किया गया था, पुलिस प्रशासन ने भी अनदेखी की। इस संबंध में राजस्थान पत्रिका के छह मार्च के अंक में प्रकाशित समाचार ‘दिख नहीं रही कैटल फ्री सिटी की मुहिमÓ के बाद याचिकाकर्ता ने अदालत का फिर से दरवाजा खडख़ड़ाया है।
यह था अदालत का आदेश
30 जनवरी 2018 को जिला स्थाई लोक अदालत ने अपने नौ पृष्ठों के आदेश में शहर में निराश्रित घूम रहे पशुओं की धरपकड़ के लिए नगर परिषद और जिला प्रशासन को पाबंद करते हुए विस्तृत गाइड लाइन जारी की थी। इसमें हेल्प लाइन से शिकायत दर्ज करने के लिए रजिस्टर संधारित करने का आदेश किया था। इसके साथ साथ आवारा पशुओं को पकडऩे के बाद उसकी प्रगति रिपोर्ट कलक्टर के समक्ष पेश करने की बात कही गई थी। इस आदेश की पालना में नगर परिषद ने फायर बिग्रेड के कंट्रोल रूम में हेल्पलाइन गठित की। पन्द्रह फरवरी से लेकर अब तक आई शिकायतों को दर्ज किया गया लेकिन कैटल फ्री सिटी अभियान को गंभीरता से नहीं लिया गया।