यूआईटी प्रशासन ने पिछले पांच सालो में 100 करोड़ रुपए से अधिक का बजट खर्च दिया है। लेकिन अभी तक कई प्रोजेक्ट अधूरे पड़े है। इलाके के बच्चों को रिझाने के लिए यूआईटी ने 18 साल पहले जवाहरनगर इंदिरा वाटिका में नौकायान की प्रक्रिया शुरू की थी।
इसके लिए बकायदा इस वाटिका के बीचोबीच तरणताल बनाया गया ताकि वहां कश्ती का आंनद बच्चे और उसका परिवार उठा सके। करीब ढाई करोड़ से अधिक का बजट इस पर फूंका गया लेकिन चंद महीनों बाद यह बच्चों का पर्यटन बंद हो गया।
शहर में पहली बार शुरू हुई इस नौकायान का बकायदा लोकार्पण तत्कालीन और मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2003 में किया था। लेकिन 2007 में इस नौकायान को बंद कर दिया गया। अब तरणताल बचा है जहां बच्चे क्रिकेट खेलते है।
यूआईटी अध्यक्ष की कुर्सी पर सत्तारुढ़ दल की ओर से नियुक्ति की जाती है। यही वजह है कि पिछले तीस साल में न्यास में छह अध्यक्ष ही मनोनीत हो पाए है।
शेष पच्चीस साल का कार्यकाल प्रशासक के हाथ में रहा है। एेसे में प्रशासनिक अधिकारियों ने इस इलाके में विकास कार्य जिस गति से बढ़ाने थे उतनी गति से नहीं कर पाए है। कार्यवाहक प्रशासक के कारण निर्णय लेने में भी देरी हुई जिसका खमियाजा इलाके को भुगतना पड़ा है। न्यास ने जिन कार्यो के लिए बड़े बड़े दावे किए है, अब भी अधूरे है।
न्यास प्रशासन ने करीब चौदह साल पहले वर्ष २००७ में सूरतगढ़ बाइपास पर किसान चौक के निर्माण का दावा किया था। सूरतगढ़ मार्ग पर इस चौक के निर्माण के लिए बकायदा सत्तर लाख रुपए का बजट भी खर्च किया गया था। इसके बावजूद अभी तक यह चौक कागजी में निपट गया है।
वहां अभी तक किसान चौक का साइन बोर्ड तक अंकित नहीं किया गया है। इस चौक से एक दिशा में हनुमानगढ़ बाइपास है तो दूसरी दिशा में पदमपुर बाइपास, तीसरी दिशा में श्रीगंगानगर तो चौथी दिशा में सूरतगढ़ की ओर मार्ग है।
इधर, शिव चौक से राजकीय जिला चिकित्सालय तक हाइवे के दोनों साइडों में इंटरलोकिंग टाइल्स बिछाकर सर्विस रोड का निर्माण तीन साल पहले शुरू किया गया था। लेकिन यह सर्विस रोड हनुमानजी की मूर्ति तक बन पाई। आगे निर्माण करने पर न्यास प्रशासन ने कन्नी काट ली। इस निर्माण पर करीब सवा करोड़ रुपए का बजट खर्च किया गया था।
यहां कि लोहे की जालियां लगाकर दुकानदारों की मनमर्जी रोकने का प्रयास भी इस निर्माण कार्य में शामिल था लेकिन चंद दुकानदारों के दबाव में आकर यह निर्माण ही बंद कर दिया। राजकीय जिला चिकित्सालय से सूरतगढ़ बाइपास तक सड़क को फोरलेन बनाने के लिए हर साल न्यास की बैठक में चर्चा होती रही। यहां तक कि पिछले चार सालों में इसके लिए अनुमानित खर्च का भी ब्यौरा अधिकारी देते रहे लेकिन यह निर्माण अब तक नहीं हो पाया है।
इस कारण आए दिन वहां सड़क हादसे होते है। दुकानों के आगे निर्माण सामग्री ने इस पूरी रोड की चाल बिगाड़ दी है। दस साल बाद अब जिला कलक्टर ने यह काम सार्वजनिक निर्माण विभाग से कराने का निर्णय लिया है। न्यास को सिर्फ वहां डिवाइडर निर्माण की जिम्मेदारी दी गई है।