इन दोनों प्रकार की बर्फियों से कारोबार इतना पसरा है कि अब इलाके में दुकानदार अपनी दुकान पर साइन बोर्ड में असली और पुरानी दुकान का दावा करते है। हर दुकानदार का अपना तर्क होता है कि वह और उसका परिवार ही इस बर्फी के पुश्तैनी है।
गोलबाजार में एक साथ चार दुकानें रेवाड़ी बर्फी के नाम से संचालित हो रही है। चारों दुकानों पर ग्राहकों का तांता लगा रहता है। यही कमोबेश स्थिति केसरीसिंहपुर बर्फी की है। इस बर्फी की दुकान गोलबाजार से होती हुई अब गली मोहल्ले तक पहुंच गई है। कम मीठे और हल्की होने के कारण इस बर्फी ने काजू कतली से मुकाबला अब बनाए रखा है।
जिले भर में बर्फियां का हर साल औसतन डेढ़ सौ करोड़ रुपए का कारोबार होता है। हर त्यौहार और खुशी के मौके पर बर्फी का बाजार अब तक कायम है। इलाके से पलायन हो चुके या अपने कामों से विदेशों में रहने वाले इलाके के लोग हर साल रेवाड़ी और केसरीसिंहपुर बर्फी की डिमांड करते है। इनके परिवारिक सदस्य या परिचित या रिश्तेदार जब भी अमेरिका, आस्टे्रलिया, कनाडा, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका, चीन, इंग्लैण्ड आदि जाते है तो एेसी बर्फी को साथ लेकर आते है।
अब तो कई लोगों ने कूरियर के माध्यम से मिठाई मंगवाना भी शुरू कर दिया है। बर्फी सूखी मिठाई है इस कारण परिवहन के दौरान यह खराब नहीं होती। रेवाड़ी बर्फी के पुराने दुकानदार महावीर गुप्ता के अनुसार देश के विभिन्न इलाकों के अलावा विदेशों में भी रेवाड़ी बर्फी के शौकीनों का जायजा अब भी बरकरार है।
उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे इलाके का विस्तार हो रहा है तो बर्फियों की दुकानें भी अधिक खुलने लगी है। लेकिन पुरानी दुकान पर ग्राहकों की डिमांड अधिक रहती है। गुप्ता ने दावा किया कि इस बर्फी के कारोबार से करीब पांच हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। खाद्य सामग्री महंगी होने के बावजूद बर्फी के दाम नहीं बढ़ाए गए है। कोरोना काल में इस मिठाई की खरीददारी कम हुई लेकिन अब स्थिति सामान्य बनने लगी है।
इधर, दुकानदार सुरेश की माने तो अब बर्फियों की अलग अलग वैरायटी आने लगी है। इस कारण अब उपभोक्ता की डिमांड के अनुरुप बर्फी बनवाई जाती है।