बदलते परिवेश में लोगों ने बाल श्रम मुक्ति दिलाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया है। इसका नतीजा है कि पिछले साढ़े आठ सालों में जिले में 454 बाल श्रमिक मुक्त कराए जा चुके है। वहीं 180 दुकानदार या फैक्ट्री संचालकों को गिरफ्तार किया जा चुका है। करीब डेढ़ सौ से अधिक विभिन्न पुलिस थानों में मामले भी दजज़् हो चुके है।
इसके बावजूद बाल श्रम का दाग अब तक दूर नहीं हो पाया है। अब भी कई ऐसी दुकानों जहां बालकों से मजबूरन काम करवा जा रहा है। हालांकि पुलिस की विशेष टीम मानव तस्करी विरोधी यूनिट की तत्परता से बाल श्रम पर लगाम लगी है।
ज्ञात रहे कि विश्व श्रम निषेध दिवस की शुरुआत अन्तराष्ट्रीय स्तर पर वषज़् 2002 में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य बाल श्रम की विश्व स्तर पर ध्यान केन्द्रित करना और बाल श्रम को पूरी तरह खत्म करना था। लेकिन अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोटज़् के अनुसार अब तक बाल श्रम से मुक्ति नहीं मिल पाई है। यूनीसेफ के अनुसार बाल श्रम कराने का मुख्य कारण बच्चों का आसानी से शोषण किया जा सके।
गरीबी की वजह से भी बच्चे स्कूल की बजाय खतरनाक स्थलों पर मजबूरन काम करते है। ऐसे बाल श्रम को मुक्त कराने के लिए इस दिवस की शुरुआत की गई। राजस्थान में वषज़् 2012 में पुलिस ने बाल श्रम मुक्ति के लिए मानव तस्करी विरोध यूनिट का गठन किया था।
पंजाबी बाहुल्य क्षेत्र इलाके श्रीगंगानगर जिले में महिलाएं अपने हाथों में चूडिय़ों से ज्यादा चूड़े पहनती है। बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986 के तहत एक माह से लेकर दो साल कारावास और दस हजार से लेकर पचास हजार रुपए जुमानज़्े का प्रावधान है।
पूरे जिले में मानव तस्करी विरोधी यूनिट की ओर से 180दुकानदार, नियोक्ता, फैक्ट्री संचालकों को गिरफ्तार किया जा चुका है। लेकिन पिछले आठ सालों में एक भी नियोक्ता को अब तक सजा नहीं हुई है। हालांकि कई नियोक्ताओं को जुमानज़ जरूर हुआ है। मानव तस्करी विरोधी यूनिट के प्रभारी सीआई दिलबाग सिंह का कहना है कि बाल श्रम कारज़्वाई के लिए पूरी टीम तत्पर है।
सूचना मिलते ही कारज़्वाई करते है। इसके अलावा लापता बच्चों की खोजबीन के लिए ऑपरेशन मिलान में गुमशुदा हुए 217 में से 35 बच्चों को घर वापस भिजवाने के लिए पूरी टीम ने सक्रिय रूप से काम किया।