कृषि में सिरमौर इस इलाके के लिए लायलपुर फार्म बाग नहीं विरासत था और विरासत भी एेसी जिसे देखने के लिए देश के दो प्रधानमंत्री, कई मुख्यमंत्री और दर्जनों कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि वैज्ञानिक आए। उद्यान
पंडित बागवानी के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। उनके इसी समर्पण भाव की देन है गंगानगरी किन्नू जिसने देश में ही नहीं विदेशों तक विशिष्ट पहचान बनाई।
अपने जीवन काल में उद्यान पंडित नरूला ने फलदार पेड़ पौधों पर न जाने कितने अनुसंधान किए और उनकी एेसी वैरायटी तैयार की जो देखने और खाने दोनों में लाजवाब लगे। उनकी तैयार की हुई फलों की वैरायटी को हजारों पुरस्कार मिले। इसके बावजूद बागवानी पर उनके प्रयोग उम्र के अंतिम पड़ाव तक जारी रहे।
पुरस्कार दर पुरस्कार
बागवानी के क्षेत्र में किए गए नवाचारों के लिए करतार सिंह नरूला को पहला पुरस्कार उद्यान पंडित की उपाधि के रूप में मिला। उन्हें यह पुरस्कार १६ जून १९६३ को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के हाथों मिला। उन्हें अमरूद उत्पादन में अखिल भारतीय स्तर का पुरस्कार १९७५ में मिला। उसके बाद तो उद्यान पंडित नरूला को बागवानी के क्षेत्र में इतने पुरस्कार मिले कि उनके फार्म हाउस के कई कमरे उनसे अट गए।
बागवानी की शुरुआत
उद्यान पंडित नरूला ने लायलपुर फार्म की जमीन १९४७ में खरीदी। तब तक गंगनहर का निर्माण हो चुका था और इलाके में रेतीले धोरे अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे। सबसे पहले तेज हवा और आंधी का असर कम करने के लिए अपने फार्म के चारों तरफ शीशम के पेड़ लगाए। किन्नू की शुरुआत उन्होंने १९५२ में तथा आम की १९५८ में की। किन्नू के पौधे पाकिस्तान से आए और आम के पौधे बरेली और मेरठ से लाए गए। लायलपुर फार्म में लगे किन्नू और आम के पौधे १९६६ में फल देने लगे। इसके बाद तो उद्यान पंडित नरूला ने देश भर से फलदार पौधे लाकर अपने फार्म में लगाए और नई-नई वैरायटियां तैयार की।
नेहरू सहित कइयों ने देखा
बागवानी के क्षेत्र में लायलपुर फार्म की पहचान देशभर में बनी। पंडित जवाहरलाल नेहरू १९६३ में श्रीगंगानगर के दौरे पर आए तो लायलपुर फार्म को देखा। मोहनलाल सुखाडि़या जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब श्रीगंगानगर के दौरे पर आई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी लायलपुर फार्म को देखा। बागवानी विषय में अघ्ययन कर रहे देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के छात्रों और उद्यान वैज्ञानिकों ने भी समय-समय पर इस फार्म का भ्रमण कर उद्यान पंडित से बागवानी की बारीकी समझी।
लायलपुर से श्रीगंगानगर तक
उद्यान पंडित करतार सिंह नरूला को जन्म २२ दिसम्बर १९२२ को लायलपुर (अब पाकिस्तान में) हुआ। खालसा कॉलेज लायलपुर से एफए करने के बाद उन्होंने अपनी रुचि के अनुसार राजकीय कृषि महाविद्यालय लायलपुर से कृषि विषय में एक वर्षीय कोर्स किया। उनका परिवार १९४४ में लायलपुर से आ गया था। श्रीगंगानगर में उन्होंने १९४७ में भूमि खरीदी और उस पर बागवानी का इतिहास रच दिया।
उद्यान पंडित अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन उनकी विरासत लायलपुर फार्म उनकी स्मृति को ताजा रखे हुए था। आने वाले समय में लायलपुर फार्म भूखंडों के रूप में टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा तो इस बाग में आश्रय लिए हजारों पक्षियों की चहचहाट भी शांत हो जाएगी और हरियाली की जगह बन जाएंगे रंग बिरंगे कंक्रीट के मकान।
किन्नू की पौध दूर तक
लायलपुर फार्म में तैयार किन्नू की पौध देश के हर हिस्से में गई। पूर्व कृषि मंत्री एवं लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने लायलपुर फार्म में तैयार किन्नू की पौध से ही अपनी जमीन पर बाग लगाए जो आज भी लहलहा रहे हैं।