पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि हर साल जिले में घरों से युवतियों के लापता होने के मामले थानों में आते हैं और इनकी संख्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। जिसमें भी बालिग युवतियों के घर से लापता होने के मामले में सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं। वहीं युवकों के परिजन इस संबंध में बहुत ही कम मामले दर्ज कराते हैं। ऐसे में युवतियों को ढूंढकर लाना पुलिस के लिए भी चुनौती बना हुआ है। इसके लिए अब पुलिस विभाग की एक पूरी यूनिट ही बनी हुई है।
फोटो…एक्सपर्ट व्यू- मनोचिकित्सक
– राजकीय चिकित्सालय के मनोरोग विभाग के डॉ. प्रेम अग्रवाल का कहना है कि कम उम्र में बालक – बालिकाओं दुनियादारी का कुछ पता नहीं होता। इसी समय हारर्मोंस लेबल ज्यादा होता है, जिससे एक-दूसरे की तरफ आकर्षण रहता है।
वहीं भावनाएं बढ़ जाती है। ऐसे में बच्चा या बच्ची गलत कदम उठा लेते हैं। दूसरा सामाजिक कारण ये है कि अब संयुक्त परिवार खत्म हो गए। बच्चे मां-बाप की सुनते नहीं है। उनको बाहरी लोग ज्यादा अच्छे लगते हैं, जिससे परिवार में संतुलन बिगड़ता है। बच्चे स्वछंद होने लगते हैं। वहीं अब परिवारों में नैतिक मूल्यों का हास हो गया है। लोग पश्चिमी सभ्यता की होड में गलती कर रहे हैं।
वहीं फिल्मों का समाज को बिगाडऩे का सबसे ज्यादा रोल रहा और अब मोबाइल ने आग में घी डालने का कार्य कर दिया है। इसको कंट्रोल करने के लिए सबसे पहले परिवार में नैतिक मूल्य जरुरी है। बच्चों को भी ऐसी ही शिक्षा दी जाए कि वे बड़ों का आदर करें। उनकी बात सुनें। जो गलत है उसको गलत मानें। उनको वास्तविक जिंदगी की बारे में बताया जाए। बच्चों से दोस्ताना व्यवहार किया जाए। उन पूरी निगरानी हो।
फोटो…एक्सपर्ट व्यू- समाज शास्त्री
– बल्लूराम गोदारा गल्र्स कॉलेज की सामाज शास्त्र की सहायक आचार्या डॉ. पूनम बजाज का कहना है कि जब से मोबाइल व सोशल मीडिया आया है, तब से युवतियों के लापता होने की घटनाएं बढ़ी है। जो सामाजिक ताने बाने में गलत हो रहा है। बच्चे माता-पिता के बजाय दोस्तों से बात करना पसंद करते हैं। फिल्मों की तरफ हीरो व हीरोइन की तरह खुद को समझते हैं।
परिजन बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करें। उनकी सुनें। अब हालात इतने बिगड़ गए हैं कि स्कूल स्तर से ही काउंंसलिंग की व्यवस्था हो ओर कॉलेज स्तर पर सेल बनाई जाए। तो कॉलेज में प्रथम वर्ष के बच्चों की काउंसलिंग करे और भविष्य के बारे में जानकारी दें। परिजन भी बच्चों का ध्यान रखें तथा उनके साथ खुलेपन का माहौल बनाएं। जिससे बच्चे कोई भी बात छिपाएं नहीं।
85 प्रतिशत को कर लाती है ट्रेस
– घर से युवतियों के लापता होने के मामले दर्ज होने पर पुलिस पता लगा लेती है कि युवती को कौन साथ ले गया है। ऐसे में पुलिस उनकी तलाश शुरू करती है। ऐसे मामलों में करीब 85 प्रतिशत युवतियों को पुलिस बरामद कर लाती है। जिसमें पुलिस का काफी समय बर्बाद होता है। ऐसे प्रकरणों को अब मानव तस्करी विरोधी यूनिट के हवाले कर दिया गया है। जो इसकी जांच व तलाश करते हैं।
जिले में लापता हुए युवक व युवतियों की स्थिति
वर्ष 18 से कम मेल 18 से कम फीमेल 18 से ऊपर मेल 18 ऊपर फीमेल कुल
2016 10 49 112 221 392
2017 17 67 152 331 567
2018 15 73 174 425 687
2019 16 92 233 559 900
2020 13 83 172 580 848
2021 13 104 149 579 845
फोटो…इनका कहना है
– ऐसे केसों में पुलिस नाबालिग है तो आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करती है। वहीं बालिग को भी बरामद कर लाया जाता है। पुलिस का प्रयास सौ प्रतिशत बरामदगी का रहता है। अब जमाना बदल गया है। परिजनों को अपने बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए। जिससे कोई भी बात वे उनको बता सकें। उनको समय देना चाहिए। इससे ही समस्या का कुछ हल संभव है।
– आनंद शर्मा, पुलिस अधीक्षक श्रीगंगानगर