स्थानीय कस्बे के वार्ड पांच निवासी रोशनीदेवी ने बताया कि करीब दो साल पहले उन्हें बेटे की बीमारी के बारे में पता चला। उसका राजधानी जयपुर के साथ-साथ अहमदाबाद तक उपचार करवाया। दिहाड़ी-मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले परिवार के पास जीवन निर्वहन के लिए कुछ बीघा पैतृक कृषिभूमि भी थी। ऐसे में माँ रोशनीदेवी ने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया और कृषिभूमि भी बेच दी। उपचार पर करीब पन्द्रह लाख रुपये खर्च हुआ। साथ ही बेटे को नवजीवन प्रदान करने के लिए माँ ने अपनी किडनी भी बेटे को लगवाने के लिए सहमति प्रदान करते हुए अविलंब उपचार प्रारंभ करवाया। हालांकि उपचार पूर्ण होने के बाद भी अब प्रति महीने करीब पन्द्रह से बीस हजार रुपए का खर्च बेटे की दवा पर लग रहा है। इस खर्च के लिए यह मां स्वयं दिहाड़ी-मजदूरी कर रही है।