इस संबंध में ट्रैफिक पुलिस के प्रभारी कुलदीप चारण ने कलक्टर ज्ञानाराम के निर्देश पर स्पीड ब्रेकरों के लिए स्थान चिन्हित कर अपनी रिपोर्ट जिला परिवहन अधिकारी और कलक्टर को सौंप दी। इसी तरह ट्रैफिक पुलिस कर्मियों के लिए मुख्य चौराहों पर गुमटियों का निर्माण किए जाने का फैसला भी फाइल में बन कर रह गया। ट्रैफिक पुलिस कर्मियों को धूप और बरसात से बचाने के लिए इन गुमटियों का निर्माण करवाया जाना है।
शहर में मुख्य सड़कों के किनारे खड़ी रहने वाली कारों की समस्या से निजात के लिए गोल बाजार एरिया में स्थाई पार्किंग का निर्माण करवाने का प्रस्ताव भी ठण्डे बस्ते के हवाले हो गया है। शिव चौक से हॉस्पीटल तक रेता-बजरी के व्यवसाय पर अंकुश के लिए बनाया गया प्रस्ताव भी सिरे नहीं चढ़ पाया और तो और बसों विशेषकर राजस्थान रोडवेज की बसों के जस्सा सिंह मार्ग (मिनी बाइपास) से होकर आने-जाने का फैसला भी अधर में है। कोडा चौक से निजी बसों को हटाने के लिए बनाई गई कार्य योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई है।
जिला कलक्टर की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय किया गया था कि बस स्टैण्ड के आसपास निजी बसों का जमावड़ा न हो। कोडा चौक पर 10 मिनट पहले वही बस आए, जिन्हें परमिट मिला हुआ है। कुल मिलाकर यातायात प्रबंधन समिति के फैसले फाइलों में दबे पड़े हैं, जबकि शहरी क्षेत्र में यातायात व्यवस्था पूरे तौर से गड़बड़ाई हुई है। सड़कों की हालत पहले ही खराब है और ऊपर से लिए गए फैसले की क्रियान्विति न होने से हालत और भी खराब हो गए हैं।
इनका कहना है
‘मैं पिछले पांच साल से लगातार जिला स्तरीय यातायात समिति का सदस्य हूं। समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय में से महज 10 प्रतिशत फैसले ही लागू हो पाएं हैं। सड़क सुरक्षा की दृष्टि से लिए गए फैसलों की पालना होनी जरूरी है।’
– मोहन सोनी, सदस्य, जिला स्तरीय यातायात प्रबंधन समिति, श्रीगंगानगर।
‘कार्यभार संभाले एक सप्ताह भी नहीं हुआ है। संंबंधित फाइल को देखकर ही कुछ कह पाना संभव होगा।’
– सुमन देवी, जिला परिवहन अधिकारी, श्रीगंगानगर।