स्ट्रीट लाइट की खरीद में श्रीगंगानगर के अलावा रायसिंहनगर, श्रीकरणपुर और सूरतगढ़ के ग्रामीण इलाके में गड़बडि़यों की शिकायत के बाद जिला परिषद की जांच टीमों ने यह प्रकरण उजागर भी किया। तत्कालीन सरपंचों और ग्राम सेवकों को दोषी भी माना।
रिकवरी के लिए जिला परिषद प्रशासन ने ग्राम सचिवों के वेतन से यह कटौती भी शुरू की लेकिन तत्कालीन सरपंचों से रिकवरी की प्रक्रिया जटिल होने के कारण इन फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। यही स्थिति रंगीन कुर्सियों की खरीद में हुई।
जिले की अस्सी ग्राम पंचायतों में रंगीन कुर्सियों की खरीद में ठेका फर्म और ग्राम पंचायत के तत्कालीन सरपंच व ग्राम सेवकों की भूमिका सामने आई थी। दो हजार रुपए की कीमत की इन कुर्सियों को ग्राम पंचायतों में नौ हजार रुपए प्रति कुर्सी की दर से खरीद की गई।
इस बीच, जिला परिषद के अधिकारियों की जांच टीमों ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया गया कि ग्र्राम विकास अधिकारी और संबंधित सरपंचों के नाम से कमीशन अधिक हावी रहा।
ग्राम पंचायतों में सप्लाई की गई इन सीमेंटेड कुर्सियों का विवरण जेम पोर्टल पर कोई विवरण नहीं है। जेम पोर्टल पर सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद की जाने वाली प्रत्येक वस्तु व उसकी कीमत दर्ज है। इससे बाहर जाकर कोई भी सरकारी एजेंसी खरीद नहंी की सकती।
कुर्सियों का विवरण ना तो जेम पोर्टल पर दर्ज था और न ही बीएसआर दरों में इसका निर्धारण किया गया। इसके अलावा कुसिज़्यों की खरीद के लिए किसी प्रकार की प्रशासनिक, वित्तीय अथवा तकनीकी स्वीकृति जारी नहीं की गई है।
जिले की पदमपुर, सूरतगढ़, अनूपगढ़, घडसाना, श्रीविजयनगर, श्रीकरणपुर, रायसिंहनगर, सादुलशहर, श्रीगंगानगर पंचायत समितियों में इन कुर्सियों की खरीद का खेल चल रहा है।
शिकायत के अनुसार पदमपुर क्षेत्र ग्राम पंचायत जालौकी, बैंरा, श्रीबिजयनगर पंचायत समिति क्षेत्र ग्राम पंचायत 8 एसएचपीडी, रायसिंहनगर पंचायत समिति क्षेत्र ग्राम पंचायत सरदारपुरा बीका, 22 पीएस, 66 आरबी, 71 आरबी, लूणेवाला, कीकरवाली, ठाकरी, सादुलशहर पंचायत समिति क्षेत्र ग्राम पंचायत करड़वाला, श्रीगंगानगर पंचायत समिति क्षेत्र ग्राम पंचायत 21 जीजी बुर्जवाली, चूनावढ़, ततारसर, 5 जी सहारणावाली आदि शामिल थी।
बिना स्वीकृति जारी किए हर पंचायत पर अस्सी हजार रुपए से लेकर साढ़े चार लाख रुपए की खरीद की गई। इस खेल में सरपंच, ग्राम सचिव, पंचायत प्रसार अधिकारी और संबंधित पंचायत समिति के विकास अधिकारियों की भूमिका सामने आई।
लाखों रुपए की इस खरीद में टैण्डर की प्रक्रिया अपनाने की बजाय अपने चेहते ठेका फर्मो से मनमर्जी के रेट निर्धारित कर खरीद कर ली गई। यहां तक कि किसी भी सरकारी एजेंसी की ओर से निर्धारित रेट का भी जिक्र खरीद प्रक्रिया में नहीं अपनाया।
नतीजन एक से दूसरे ग्राम पंचायतों में यह खरीद होने लगी। एक ठेका फर्म को ही अधिकृत कर बाजार मूल्य से कई गुणा दाम से खरीद टैण्डर की बजाय कोटेशन से करवा ली। जिला परिषद की तत्कालीन सीईओ आईएएस अफसर चिन्मयी गोपाल ने जांच भी कराई लेकिन इस अधिकारी के तबादले के बाद दोषियों पर एक्शन लेने की बजाय इस प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।