एक ओर केन्द्र को महिला एवं बाल विकास विभाग का बताकर उनमें आने वाले बच्चों के लिए पोषाहार और अन्य सुविधाएं नहीं देने और वहीं शिक्षा विभाग इन सरकारी स्कूलों के संस्थान प्रधानों की देखरेख में आंगनबाड़ी केन्द्रों के संचालन की बात कह रहा हैं। आंगनबाड़ी वर्करों का आरोप है कि जब महिला एवं बाल विकास के अधीन केन्द्र है तो उसमें वर्कर, सहायिका और आशा सहयोगिनों की हाजिरी चैकिंग या वहां आने या जाने के लिए स्कूल के प्रिंसीपल या हैडमास्टर किस आधार पर दखलदांजी कर रहे है। जब बच्चों को गर्म पोषाहार के बारे में गुहार की जाती है तो यह क्षेत्राधिकार महिला एवं बाल विकास विभाग के जिम्मे कर दिया जाता है।
एक ही स्कूल की चारदीवारी में दो नियम समझ से परे है। इस संबंध में अखिल राजस्थान राज्य महिला एवं बाल विकास कार्मिक संयुक्त संघ की जिलाध्यक्ष सीता स्वामी ने रोष जताते हुए जिला प्रशासन से स्कूलों में आने वाले बच्चों के लिए एक नियम जारी करने के निर्देश दिए हैं।
इधर, आंगनबाड़ी केन्द्रों में आने वाले अधिकांश बच्चे उन परिवारों से होते हैं, जिनमें इतना सामर्थ्य नहीं होता कि बच्चे को उसकी पसंद का खिलौना दिला सके। ऐसे परिवारों के बहुत से बच्चों का बचपन तो बिना खिलौनों से खेले हुए ही बीत जाता है। जिला कलक्टर रुक्मणि रियार सिहाग ने इन बच्चों को बचपन की खुशियां देने के लिए जिला मुख्यालय पर खिलौना बैंक बनाने का निर्णय किया है। इस बैंक में जमा होने वाले खिलौने बाद में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पहुंचाए जाएंगे, जहां उनसे खेलते हुए बचपन खिलखिलाएगा।
इधर, आंगनबाड़ी केन्द्रों में आने वाले अधिकांश बच्चे उन परिवारों से होते हैं, जिनमें इतना सामर्थ्य नहीं होता कि बच्चे को उसकी पसंद का खिलौना दिला सके। ऐसे परिवारों के बहुत से बच्चों का बचपन तो बिना खिलौनों से खेले हुए ही बीत जाता है। जिला कलक्टर रुक्मणि रियार सिहाग ने इन बच्चों को बचपन की खुशियां देने के लिए जिला मुख्यालय पर खिलौना बैंक बनाने का निर्णय किया है। इस बैंक में जमा होने वाले खिलौने बाद में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पहुंचाए जाएंगे, जहां उनसे खेलते हुए बचपन खिलखिलाएगा।
जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को जिला कलक्टर की योजना के अनुरूप मॉडल रूप में विकसित किया जा रहा है। इन केंद्रों पर आने वाले बच्चों को खेलने के लिए खिलौने मिल सके, इसके लिए खिलौना बैंक की स्थापना की जा रही है। कलक्टर का मानना है कि खिलौनों से नहीं खेलने वाले बच्चों का बचपन अधूरा होता है। खिलौना बैंक इस कमी की पूर्ति करेगा।