मुझे 3 जून को बुखार,खांसी और शरीर में दर्द की शिकायत हुई। कोरोना संक्रमित होने का संदेह होने पर भी घर में ही इलाज प्रारंभ कर दिया। जो मेरी गलती थी। तीन दिन में ही मेरी हालत बदतर होने लगी थी। अखिरकर 7 जून को मुझे राजकीय जिला चिकित्सालय श्रीगंगानगर में भर्ती करवाया गया। लेकिन इसके बाद भी कुछ दिन तक मेरी हालत और ज्यादा खराब होती जा रही थी। ऑक्सीजन स्तर 40 प्रतिशत से भी कम हो गया था। छाती का इंफेक्शन भी बढ़ता जा रहा था। और लीवर में भी समस्या आनी शुरू हो गई थी। मेरे साथ आए परिवर के लोगों से मेरी हालत देखी नहीं जा रही थी। मुझे वेंटिलेटर पर लेकर हाई फ्लो ऑक्सीजन मास्क लगाया गया। वार्ड के सारे मरीज एक ही बात समझा रहे थे की अब अगर हौंसला छोड़ दिया तो जान नहीं बचेगी। सबको देखकर और ईश्वर में भरोसे के साथ मैं जीत के जज्बे से डटा रहा और नतीजन15 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद भी कोरोना को हराकर ही दम लिया।
-जिला अस्पताल की सेवाओं ने बदल दी धारणा अस्पताल में भर्ती होने से लेकर डिस्चार्ज होने तक मैं हॉस्पिटल स्टाफ की सख्त और अनुभवी निगरानी में रहा। व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूं कि इलाज और परवाह के मामले सरकारी अस्पताल निजी से कहीं आगे है। यहां के स्टाफ द्वारा इलाज के साथ-साथ की गई हौसला अफजाई आजीवन याद रहेगी। कोरोना के खिलाफ मेरी इस जंग में डॉ.संदीप तनेजा, डॉ.मुकेश बंसल,डॉ.पवन सैनी व डॉ.इन्द्राज सहारण,वार्ड प्रभारी सुखमिन्द्र सिंह बराड़ तथा नर्सिंग स्टाफ में राजेश कुमारी,प्रेम वर्मा,भूपेन्द्र,वीना लाडव व पृथ्वीराज और सभी सफाई कर्मचारी ढाल बन कर खड़े रहे।
कोरोना को हल्के में नहीं लेवें मेरा सभी से यही निवेदन है अभी भी कोरोना को हल्के में ना लेते हुए मास्क और सामाजिक दूरी का पालन जरुर करें तथा बगैर चिकित्सक की सलाह के कोई दवाई ना लेवें