scriptश्रीगंगानगर में पेट की खातिर उड़ा रहे है तोते | Parrots are flying in Sriganganagar for the sake of stomach | Patrika News

श्रीगंगानगर में पेट की खातिर उड़ा रहे है तोते

locationश्री गंगानगरPublished: Jan 23, 2020 01:55:39 pm

Submitted by:

surender ojha

Parrots are flying in Sriganganagar शहर से सटे गांव 10 जैड में लगे अमरुदों के बाग में सन्नाटे में जोर जोर से कूकळी सुनाई देती है।

श्रीगंगानगर में पेट की खातिर उड़ा रहे है तोते

श्रीगंगानगर में पेट की खातिर उड़ा रहे है तोते

श्रीगंगानगर. बदलते परिवेश के बावजूद अब भी परम्परागत तरीकों को अपनाने से काश्तकार परहेज नहीं करते। शहर से सटे गांव 10 जैड में लगे अमरुदों के बाग में सन्नाटे में जोर जोर से कूकळी सुनाई देती है।
यह कूकळी लगातार लगाई जा रही है, इस बाग में युवकों की टोलियां अलग अलग क्यारियों में लगे अमरुदों के पौधों की मॉनीटरिंग कर वहां तोते उड़ाने में लगी थी। युवक अपने मुंह से ऐसी आवाज निकालते है जिसे सुनकर अमरुदों पर बैठने वाले तोते परहेज करते है।
हालांकि बदलते परिवेश में तेज साउण्ड का डीजे भी है लेकिन अमरुदों के बाग में ऐसे साउण्ड कारगर साबित नहीं होते। जब तोतों का झुंड आता दिखता है तो वहां पटाश के पटाखे से धमाका किया जाता है, इस धमाके के शोर से तोते वहां एक साथ नहीं आते। लेकिन एक एक पौधे पर अमरूद फल पर ऐसे मजदूरों से काम कराया जाता है।
अपनी आवाज से तोतों को उड़ाने में लगे थे। अमरुद फलों पर तोते और अन्य पक्षी आकर बैठकर चोंच मारते है, इससे फल खराब हो जाता है। कच्चे अमरुदो को पकने की अवस्था के दौरान अधिक माथापच्ची करनी होती है।
अमरुदों के बाग में एक्सपर्ट मजदूरों की टोलियां बकायदा उत्तर प्रदेश से बुलाए जाते है। ऐसे एक्सपर्ट मजदूर अमरुद फलों को बचाने का काम करते है।

ऐसे में ठेकेदार इनको दुगुनी मजदूरी पर काम करवाते है। करीब चार माह की समय अवधि के दौरान हर मजदूर को पन्द्रह से सौलह हजार रुपए मासिक मजदूरी दी जाती है। इसके साथ साथ चाय, भोजन और रहने की व्यवस्था भी ठेकेदार देता है।
ठेकेदार दिनेश शर्मा ने बताया कि अमरुदों के बाग में फल पकने के दौरान बच्चे जैसी देखभाल की जाती है। पक्षी खासतौर पर तोते सबसे ज्यादा अपनी चोंच से कच्चे फलों पर चोंच मारकर खराब करने की जिद्द करते है। इन पक्षियों से निपटने के लिए कूकळी मारने वाले मजदूर उत्तर प्रदेश से बुलाए जाते है।
ये मजदूर सुबह से शाम तक कूकळी मारकर तोतो को उड़ाते है। इससे अधिक फायदा मिलता है। हालांकि पॉटाश से धमाका विषम परिस्थितियों में किया जाता है, इस धमाके का असर जानवर पर पड़ता है, खासतौर पर गाय जैसे गौवंश पोटाश की धमाके से सहम जाते है। देसी अमरुदों की मांग अधिक है लेकिन आपूर्ति कम रहती है। 35 से 40 रुपए प्रति किलो अमरुद बिक रहे है।

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