ऐसे में व्यापारी नगर परिषद का क्या सहयोग करेंगे। संयुक्त व्यापार मंडल, जनरल मर्चेन्ट़्स एसोसिएशन सहित कई व्यापारिक संगठनों ने नगर परिषद में आयुक्त व सभापति के साथ बैठक की। इन व्यापारियों से मुख्य नाले पर पक्के निर्माण तोडऩे के लिए नगर परिषद प्रशासन ने फीडबैक लिया।
इस दौरान व्यापारियों का कहना था कि नियमित कचरे का उठाव नहीं होता। जनरल मर्चेन्ट्स एसोसिएशन अध्यक्ष अतुल जसूजा का कहना था कि नगर परिषद ने बाजार में अपना विश्वास खो दिया है, उसे वापस लाने के लिए काम करके दिखाना होगा। ऑफिस में बैठकर बातें करने से काम नहीं होगा, धरातल पर आकर काम करके दिखाओ। यदि यही ढर्रा रहा तो कोई भी व्यापारी सहयोग नहीं करेगा। कचरे के ढेर उठाने के लिए नगर परिषद के अफसर एक दूसरे को अधिकृत बताकर पल्ला झाड़ लेते है। स्वस्थ भारत मिशन कगजों में चल रहा है।
संयुक्त व्यापार मंडल अध्यक्ष तरसेम गुप्ता का मानना था कि सकारात्मक कदम के लिए नगर परिषद का सहयोग करेंगे लेकिन निर्माण कार्य संबंधित की अवधि की सीमा तय होनी चाहिए। अरोड़वंश समाज ट्रस्ट के अध्यक्ष कपिल असीजा ने कहा कि रवीन्द्र पथ की जर्जर स्थिति ने न केवल व्यापार चौपट कर दिया है।
राहगीर वहां से गुजरते है तो नगर परिषद प्रशासन को कोसते है। यह परिपाटी कब तक चलेगी। इस पर सभापति करुणा चांडक ने स्वीकारा कि पिछले डेढ़ महीने से इस मुख्य रोड के मुख्य नाले को प्रयोगशाला बना दिया है। यहां तक कि कंटनेरों में डाले गई सिल्ट का उठाव तक नहीं हो रहा है। इस पर आयुक्त प्रियंका बुडानिया ने सुधारने के लिए कदम उठाने की बात स्वीकारी।
इस बैठक के दौरान व्यापारी अशोक भूतना सहित कई व्यापारियों ने यहां तक आरोप लगा दिया कि सफाई निरीक्षक सफाई व्यवस्था की बजाय रेहडिय़ों और थड़ी वालों से मंथली वसूलते है। ऐसे में ट्रैफिक व्यवस्था बाधित हो रही है।
इस बीच बस ऑपरेटर यूनियन के सोनू असीजा ने कहा कि उदाराम चौक से रवि चौक तक मुख्य नाले पर लगे लोहे के जाल से सरिये बाहर निकले हुए है, राहगीर आए दिन दुर्घटना में घायल हो रहे है। व्यापारी कृष्ण मील का कहना था कि नगर परिषद के सिस्टम को सुधारने की जरुरत है।
इस दौरान सभापति के पति अशोक चांडक ने बताया कि सीवरेज प्रोजेक्ट शहर के लिए उपयोगी नहीं है। नाले औरनालियों से पानी निकासी में बार बार बाधा आ रही है तो फिर सीवर लाइनों से पानी निकासी कैसे हो पाएगी। सीवर बिछाने के नाम पर 160 करोड़ रुपए का बजट खर्च भी हो चुका है लेकिन रखरखाव की गारंटी किसी ने नहीं ली है।
पूरे प्रोजेक्ट पर 550 करोड़ का बजट खर्च होना है, ऐसे में उपयोगी कैसे होगा समझ से परे है। चांडक ने स्वीकारा कि पूरा सिस्टम फेल है। यहां तक कि पानी निकासी के लिए लिंक चैनल को जोडऩे के लिए सिर्फ 80 हजार रुपए के बजट खर्च करने की बात आई तो यूआईटी ने आनाकानी की तो उन्होंने यह राशि देने की घोषणा की लेकिन यह काम भी पिछले दो महीने से नहीं रहा है।