इसके बावजूद पांच साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी टीम में इस सांसद को चुना और उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल में केन्द्रीय राज्य मंत्री का पद तक दिया था। भाजपा की टिकट की दौड़ में पूर्व विधायक ओपी महेन्द्रा, भाजपा प्रदेश महामंत्री कैलाश मेघवाल भी शामिल थे लेकिन उनकी निहालचंद के मुकाबले उनके पास इतनी एप्रोच नहीं थी।
सांसद निहालचंद ने पिछली बार कांग्रेस के दिग्गज मास्टर भंवरलाल मेघवाल को 2,91,000 से ज्यादा वोटों से हराया था। . वह भी तब, जब पार्टी में उन्हें नापसंद करने वालों की संख्या ज्यादा थी और आम मतदाता भी उनके प्रति उदासीन लग रहा था. लगता है सियासत की घुट्टी उन्हें बचपन में ही पिला दी गई थी.
सांसद निहालचंद ने पिछली बार कांग्रेस के दिग्गज मास्टर भंवरलाल मेघवाल को 2,91,000 से ज्यादा वोटों से हराया था। . वह भी तब, जब पार्टी में उन्हें नापसंद करने वालों की संख्या ज्यादा थी और आम मतदाता भी उनके प्रति उदासीन लग रहा था. लगता है सियासत की घुट्टी उन्हें बचपन में ही पिला दी गई थी.
रायसिंहनगर के पास बाजूवाला की एक ढाणी में जन्मे निहालचंद के पिता बेगाराम चौहान एक बार विधायक और दो बार सांसद रहे थे. बेगाराम की मृत्यु के बाद राजनैतिक विरासत बड़े बेटे रामस्वरूप ने संभाली और विधायक चुने गए. उसी दौर में निहालचंद ने राजनैतिक पारी शुरू की और सडक़ हादसे में रामस्वरूप की मौत से एक हफ्ते पहले सिर्फ 24 वर्ष की उम्र में पंचायत समिति के प्रधान बने.
अगले वर्ष 1996 में 11वीं लोकसभा के चुनाव में गंगानगर से जीतकर उन्होंने देश में सबसे कम उम्र के सांसद होने का गौरव हासिल किया. उसके बाद से तो हर लोकसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया, जो अब तक जारी है।
12वीं लोकसभा के चुनाव में वे कांग्रेस के शंकर पन्नू से हार गए, तो 13वीं लोकसभा के चुनाव में उन्होंने पन्नू को हरा दिया. अगले चुनाव में वे कांग्रेस के भरतराम मेघवाल को कम अंतर से हरा पाए, पिछला चुनाव भरतराम से ही 1,40,000 वोटों से हार गए. इस बार उनकी नैया पार लगाने में मोदी लहर खासी काम आई, वरना मुकाबला उतना आसान नहीं था.
ज्ञात रहे कि निहालचंद ने पार्टी में कई दफे बगावती रुख अपनाया, लेकिन वे हमेशा किस्मत के धनी साबित हुए. 1998 में पार्टी ने उन्हें रायसिंहनगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था और चुनाव अधिकारी ने उन्हेें पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल आवंटित भी कर दिया. पर नाटकीय घटनाक्रम में पार्टी ने यह सीट समझौते के तहत हरियाणा राष्ट्रीय लोकदल को दे दी और उन्हें मैदान से हटने को कहा.
12वीं लोकसभा के चुनाव में वे कांग्रेस के शंकर पन्नू से हार गए, तो 13वीं लोकसभा के चुनाव में उन्होंने पन्नू को हरा दिया. अगले चुनाव में वे कांग्रेस के भरतराम मेघवाल को कम अंतर से हरा पाए, पिछला चुनाव भरतराम से ही 1,40,000 वोटों से हार गए. इस बार उनकी नैया पार लगाने में मोदी लहर खासी काम आई, वरना मुकाबला उतना आसान नहीं था.
ज्ञात रहे कि निहालचंद ने पार्टी में कई दफे बगावती रुख अपनाया, लेकिन वे हमेशा किस्मत के धनी साबित हुए. 1998 में पार्टी ने उन्हें रायसिंहनगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था और चुनाव अधिकारी ने उन्हेें पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल आवंटित भी कर दिया. पर नाटकीय घटनाक्रम में पार्टी ने यह सीट समझौते के तहत हरियाणा राष्ट्रीय लोकदल को दे दी और उन्हें मैदान से हटने को कहा.
इनकार करने पर उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया, पर वे डटे रहे और चुनाव जीत भी गए. उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव में भी बागी तेवर दिखाया. पार्टी ने रायसिंहनगर से उनके दावे को खारिज कर बलवीर लूथरा को उम्मीदवार बनाया, तो उन्होंने अपने भाई को निर्दलीय लड़ाने का ऐलान कर दिया. पार्टी के दिग्गज नेताओं के समझाने पर निहालचंद ने ऐनवक्त पर यह विरोध बंद कर दिया था।