शहर के समीप स्थित गांव महिंयावाली निवासी अ_ाईस वर्षीय रोहित ढुंडाडा का कहना है कि परिवार में उसके भाई व अन्य लोग अपने-अपने बिजनेस करते हैं और उनके पास गांव में जमीन भी है। एमबीए करने के बाद उस पर भी कोई काम करने का दबाव बना हुआ था। लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि किया क्या जाए। इसी दौरान पंजाब में अपने एक रिश्तेदार के यहां गया हुआ था। रिश्तेदार खुद की जमीन के लिए केंचुए से जैविक खाद तैयार करता है।
इसके बाद मोबाइल पर जैविक खाद बनाने, केंचुए, खाद से होने वाले फायदों व इसके बड़े प्रोजेक्ट के बारे में इंटरनेट पर सर्च किया। उसको पता चला कि गुडगावां में किसी ने बड़ा प्रोजेक्ट लगा रखा है। वहां जाकर जैविक खाद बनाने के बारे में जानकारी ली। इंटरनेट से पता चला कि भविष्य में कृषि क्षेत्र में बूम आने वाला है और जैविक खाद के उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इसके बाद उसने जैविक खाद बनाने का प्रोजेक्ट लगाने की ठान ली।
अपने खेत पर दो बीघा जमीन खाली करके वहां शुरूआत में छोटे से शुरूआत की। लेकिन उसको शुरूआत में गोबर से जैविक खाद बनाने वाले श्रमिक मिलने में परेशानी हुई लेकिन बाद में उसको वे मिल गए। उसने छोटी शुरूआत में अपने परिवार के खेतों के लिए जैविक खाद तैयार की। शुरू में परेशानी बहुत आई लेकिन उसने हार नहीं मानी और जैविक खाद तैयार करता रहा। खेत मालिकों से संपर्क शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे उसकी खाद बिकने लगी थी। कोरोना काल में कार्य कम हो गया तो उसने अपने प्रोजेक्ट को कई गुना बढ़ाया और पंद्रह में कई क्विंटल खाद तैयार कर रहा है। खाद के ग्राहक आने के बाद उसने अपना ब्रांड भी बना लिया। आज जिले के किन्नू के बागों, सब्जी व गेहूं के लिए खाद की मांग बढ़ रही है।
जो कमाया, प्रोजेक्ट में ही लगाया
– युवक का कहना है कि खाद बिक्री से जो भी आय होती है, उसको इसी में लगा दिया जाता है और धीरे-धीरे प्रोजेक्ट को बड़ा किया जा रहा है। आने वाले समय जैविक खाद का ही होगा। जैविक 350 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। इसके साथ ही वह अब केंचुएं भी बेच रहा है और नए किसानों को जैविक खाद तैयार में भी मदद देता है। अपने प्रोजेक्ट के लिए गोबर डेरियों, गौशालाओं आदि से खरीदकर लाई जाती है।