इधर, सीएमएचओ डा. गिरधारीलाल मेहरड़ा ने बताया कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चों के परिजनों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि बाल चिकित्सालय में इसकी निशुल्क दवाएं-उपचार उपलब्ध है। छालों के दर्द की वजह से बच्चों को बुखार और जलन की शिकायत रहती है। ऐसे में बच्चों को बुखार की सीरप या गोलियां, जलन के लिए जैल दिया जाता है। इसके बाद 4-10 दिन के भीतर बच्चे स्वस्थ हो जाते हैं।
इधर, चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ नहीं खेलने दें। बीमार बच्चे के कपड़े दूसरे स्वस्थ बच्चों को न पहनाएं, बीमार बच्चे के कपड़े अच्छे से धुले। बीमार बच्चों को स्वस्थ होने तक आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों में नहीं भेजें, हाथों को बार-बार साबुन और पानी से धोएं, डाइपर बदलने, शौचालय के प्रयोग के बाद सफाई जरूरी है।
बार-बार छुई जाने वाली सतहों, मिट्टी लगी वस्तुओं या खिलौनों को स्वच्छ और जीवाणुमुक्त करें। डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी में तेज-हल्का बुखार, गले में दर्द से पीड़ा, हाथ, पैर या मुंह में फफोले या फुंसियां, होंठ सूखे और तड़के हुए के लक्षण प्रमुख हैं।