scriptसंपन्नता-समृद्धि की फसल को लालच की खाद से खतरा | The crop of prosperity-prosperity is threatened by the manure of greed | Patrika News

संपन्नता-समृद्धि की फसल को लालच की खाद से खतरा

locationश्री गंगानगरPublished: Oct 08, 2021 03:29:50 am

Submitted by:

yogesh tiiwari

श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों की संपन्नता और समृद्धि की फसल में लालच रूपी खाद ने गहरा नुकसान पहुंचाया है। तात्कालिक लाभ के चक्कर में दूरगामी खतरों को नजरदांज करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है। ज्यादा मुनाफे वाली फसल तथा अधिक उत्पादन की चाह में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुध उपयोग ने उपजाऊ जमीन को जहरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

संपन्नता-समृद्धि की फसल को लालच की खाद से खतरा

संपन्नता-समृद्धि की फसल को लालच की खाद से खतरा

-अधिक उत्पादन की चाह में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल
महेन्द्र सिंह शेखावत. श्रीगंगानगर. श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों की संपन्नता और समृद्धि की फसल में लालच रूपी खाद ने गहरा नुकसान पहुंचाया है। तात्कालिक लाभ के चक्कर में दूरगामी खतरों को नजरदांज करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है। ज्यादा मुनाफे वाली फसल तथा अधिक उत्पादन की चाह में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुध उपयोग ने उपजाऊ जमीन को जहरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जमीन का जहरीलापन बकायदा शोध में भी साबित हो चुका है। कृषि विभाग के आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि साल दर साल रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। विशेषज्ञ भी कह चुके हैं कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल इसी तरह होता रहा तो यहां की उपजाऊ जमीन को बंजर होते देर नहीं लगेगी।
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करीब एक दशक पहले तक खेतों में गोबर की खाद डाली जाती थी। वर्तमान में किसानों ने पशुधन रखना कम कर दिया है जिससे उनकी रासायनिक खाद पर निर्भरता बढ़ी है। अधिक उत्पादन लेने के लिए खेतों में ज्यादा रासायनिक खाद डालने लगे हैं। गेहूं की फसल के लिए किसानों ने खाद के उपयोग को डेढ़ गुणा तक बढ़ा दिया है। इससे उत्पादन भी 20 प्रतिशत के लगभग बढ़ा है।
-जसवंत सिंह चंदी, जिलाध्यक्ष भारतीय किसान संघ, श्रीगंगानगर
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पूर्व में एक बीघा भूमि के लिए 25 किलो यूरिया पर्याप्त होती थी। अब किसान एक बीघा भूमि के लिए लगभग 3 गुणा (75 किलो) खाद उपयोग में लेने लग गए हैं। रासायनिक खाद के अंधाधुध प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा क्षमता में कमी आई है। खाद के तीन गुणा इस्तेमाल के बावजूद उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
-हरबंस गिल, किसान 10 ए अनूपगढ़
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पांच वर्ष पहले तक गेहूं में हम पंद्रह किलो प्रति बीघा तक खाद डालते थे। अब इसकी मात्रा पचास किलो तक हो गई है। जमीन को हमने रायासनिक खादों का आदी बना दिया है। ज्यादा खाद देने के बाद भी पहले जितना उत्पादन नहीं मिल रहा। किसान गोबर खाद का उपयोग करेंगे तो लोगों की जान भी बचेगी और जमीन की उर्वरा शक्ति भी सुधरेगी।
-प्रताप सुडा, जिलाध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, हनुमानगढ़
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फसल उत्पादन के लिए जरूरत के हिसाब से खाद जरूरी है। कृषि विभाग की सलाह गेहूं में 45 से 55 किलो प्रति बीघा यूरिया डालने की रहती है। लेकिन कुछ जगह किसान 70 से 80 किलो प्रति बीघा यूरिया डाल रहे हैं। डीएपी 22 किलो प्रति बीघा की सलाह है जबकि 35 किलो डाल रहे हैं। इसी तरह खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल होता रहा तो खेत बंजर हो जाएंगे।
-जयनारायण बेनीवाल, सेवानिवृत्त उप निदेशक(कृषि), हनुमानगढ़
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फसलों में यूरिया लिमिट से बाहर है तो वह शरीर पर असर डालती है। इससे किडनी, लीवर व हार्ट पर असर पड़ता है। इसकी जांच के लिए संसाधनों का अभाव है। यूरिया डालने का भी कोई पैरामीटर नहीं है, किसान खुद ही डालते हैं। कम है या ज्यादा इसकी कोई जांच नहीं करता और न ही ऐसा कोई सिस्टम है।
-डॉ. प्रेम बजाज, डिप्टी कंट्रोलर राजकीय चिकित्सालय, श्रीगंगानगर
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