करीब एक दशक पहले तक खेतों में गोबर की खाद डाली जाती थी। वर्तमान में किसानों ने पशुधन रखना कम कर दिया है जिससे उनकी रासायनिक खाद पर निर्भरता बढ़ी है। अधिक उत्पादन लेने के लिए खेतों में ज्यादा रासायनिक खाद डालने लगे हैं। गेहूं की फसल के लिए किसानों ने खाद के उपयोग को डेढ़ गुणा तक बढ़ा दिया है। इससे उत्पादन भी 20 प्रतिशत के लगभग बढ़ा है।
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पूर्व में एक बीघा भूमि के लिए 25 किलो यूरिया पर्याप्त होती थी। अब किसान एक बीघा भूमि के लिए लगभग 3 गुणा (75 किलो) खाद उपयोग में लेने लग गए हैं। रासायनिक खाद के अंधाधुध प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा क्षमता में कमी आई है। खाद के तीन गुणा इस्तेमाल के बावजूद उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
-हरबंस गिल, किसान 10 ए अनूपगढ़
पांच वर्ष पहले तक गेहूं में हम पंद्रह किलो प्रति बीघा तक खाद डालते थे। अब इसकी मात्रा पचास किलो तक हो गई है। जमीन को हमने रायासनिक खादों का आदी बना दिया है। ज्यादा खाद देने के बाद भी पहले जितना उत्पादन नहीं मिल रहा। किसान गोबर खाद का उपयोग करेंगे तो लोगों की जान भी बचेगी और जमीन की उर्वरा शक्ति भी सुधरेगी।
-प्रताप सुडा, जिलाध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, हनुमानगढ़
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फसल उत्पादन के लिए जरूरत के हिसाब से खाद जरूरी है। कृषि विभाग की सलाह गेहूं में 45 से 55 किलो प्रति बीघा यूरिया डालने की रहती है। लेकिन कुछ जगह किसान 70 से 80 किलो प्रति बीघा यूरिया डाल रहे हैं। डीएपी 22 किलो प्रति बीघा की सलाह है जबकि 35 किलो डाल रहे हैं। इसी तरह खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल होता रहा तो खेत बंजर हो जाएंगे।
-जयनारायण बेनीवाल, सेवानिवृत्त उप निदेशक(कृषि), हनुमानगढ़
फसलों में यूरिया लिमिट से बाहर है तो वह शरीर पर असर डालती है। इससे किडनी, लीवर व हार्ट पर असर पड़ता है। इसकी जांच के लिए संसाधनों का अभाव है। यूरिया डालने का भी कोई पैरामीटर नहीं है, किसान खुद ही डालते हैं। कम है या ज्यादा इसकी कोई जांच नहीं करता और न ही ऐसा कोई सिस्टम है।
-डॉ. प्रेम बजाज, डिप्टी कंट्रोलर राजकीय चिकित्सालय, श्रीगंगानगर