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रात भर निराहती रही आंखें, दीदार को तरसी, अल सबेरे हुए दर्शन

locationश्री गंगानगरPublished: Jan 22, 2022 02:37:07 pm

Submitted by:

surender ojha

The eyes kept staring all night, longing for the vision, early morning visions- व्रतधारी महिलाओं ने शुक्रवार रात भर दिया सब्र का इम्तिहान

रात भर निराहती रही आंखें, दीदार को तरसी, अल सबेरे हुए दर्शन

रात भर निराहती रही आंखें, दीदार को तरसी, अल सबेरे हुए दर्शन

श्रीगंगानगर. तिलकुटा चतुर्थी पर चंदा ने व्रतधारी महिलाओं के सब्र का इम्तिहान लिया। रात भर तरसी रहीं एेसी महिलाओं की आंखें, जुबां पर एक ही नाम चांद कब आएगा आसमान पर। रात इंतजार करते गुजरी लेकिन प्यास ने सोने नहीं दिया।
शनिवार तडक़े करीब चार बजे जैसे बादलों की ओट में छुपे चांद ने दर्शन दिए तो जिला मुख्यालय पर महिलाओं को सुकून सा मिला। हाथों हाथ अध्र्य देकर व्रत खोलकर गणेश महाराज की धोक लगाई।
शुकवार को दिनभर भूखी प्यासी रही महिलाओं को समय पर चंदा के दीदार की उम्मीद थी। लेकिन माघ के बादलों ने चंदा को ऐसे आगोश में लिया कि शुक्रवार देर रात तक व्रतधारी महिलाएं अघ्र्य देने के लिए आसमान को निहारती रही।
जिला मुख्यालय पर यह चांद शनिवार अल सबेरे करीब चार बजे अपने दर्शन के लिए बादलों की ओट से बाहर निकला। घरों की छत पर चढक़र बरसात और हाड़ कंपकंपाती शीत लहर के बीच चांद दिखने पर अध्र्य देकर अपना व्रत खोलने की रस्म अदायगी की।
तिलकुटा चतुर्थी का व्रत रखने वाली महिलाओं को चन्द्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करना होता है। श्रीगंगानगर के लिए चंद्रोदय का समय रात्रि 9 बजकर 12 मिनट था।

तब तक बच्चे जाग रहे थे तो चांद दिखाई देने का पता लगाने के लिए छत पर चढऩे की पहले पहल जिम्मेदारी उन्हें मिली। हर पांच मिनट बाद पन्द्रह-बीस सीढियां पार कर छत पर जाना और सर्द हवा के थपेड़े खाते हुए आसमान में चांद को ढूंढना आसान काम नहीं था।
दस बजते बजते बच्चे इस काम से उकता कर बिस्तरों में घुस गए। अब जिम्मेदारी आई बड़ों के कंधों पर। गृह स्वामिनी और उस पर व्रतधारी।

अब तक रजाइयों में दुबके पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पोल और महापोल देख देश के भविष्य का गणित बैठा रहे बड़ों को जब चांद का पता लगाने का टास्क मिला तो न चाहते हुए भी उन्हें छत पर जाना पड़ा।
दो- तीन चक्कर लगाने के बाद भी सोलह कलाएं बिखेरने वाले चंदा की रत्ती भर भी कला दिखाई नहीं दी तो हिम्मत जवाब देने लगी।

सर्द हवा की फटकार से बचने के लिए तब बड़ों को कम्बल या रजाई ओढ़ कर छत पर डेरा डालना पड़ा। मगर अफसोस आधी रात होने को चली थी और चंदा के दर्शन अब तक नहीं हुए थे।
मोबाइल युग में जीवनशैली के साथ सोच में भी बदलाव आया है। बच्चों और बड़ों के बाद छत पर मोर्चा संभाला पढ़ी लिखी व्रतधारी महिलाओं ने। हाईफाई मोबाइल फोन के साथ चढ़ी महिलाओं की उंगलियां चली तो महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश के हाईटेक शहरों से चांद दिखाई देने के शुभ समाचार मिलने लगे।
फिर क्या था मोबाइल पर चंदा के दर्शन होने लगे। अघ्र्य भी मोबाइल वाले चंदा को और फिर ……। फिर वही जिसके लिए चंदा का इंतजार था। हालांकि सूरतगढ़, बीकानेर, हनुमानगढ़ के कई इलाकों में रात बारह बजे चांद दिखा लेकिन इलाके की अधिकांश महिलाओं ने शनिवार तडक़े करीब चार बजे से छह बजे के बीच बादलों से बाहर आए चंदा के दर्शन कर अपना व्रत खोला।
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