सूरतगढ़ में रामलीला के माध्यम से भाषा की आजादी की लड़ाई
श्री गंगानगरPublished: Oct 03, 2019 07:25:51 pm
मातृभाषा राजस्थानी की मान्यता आंदोलन की प्रदेश स्तरीय कड़ी के अहम भाग सूरतगढ़ ने एक अनूठा तरीका ढूंढा, जिसके चलते वे अपनी भाषा , साहित्य, संस्कृति को तो जीवित कर ही रहे हैं साथ ही भाषा की मान्यता की लड़ाई बहुत ही सुंदर ढंग से लड़ रहे हैं।
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सूरतगढ़. देश की आजादी के संघर्ष के बाद यदि कोई संघर्ष सबसे लंबा चल रहा है तो वह है 13 करोड राजस्थानी भाषाइयों की मातृभाषा राजस्थानी की मान्यता का मुद्दा। भाषाई आजादी के लिए देश के सबसे बड़े प्रांत राजस्थान व राजस्थानी भाषाइयो का संघर्ष विभिन्न रूपों में निरंतर जारी रहा है। कई बार धरने प्रदर्शन, संसद के आगे धरने, मुख पट्टी बांधकर प्रदर्शन, सरकार को भिजवाया गया. जिसे आज 17 वर्ष होने को आए हैं। अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश के प्रधानमंत्री को राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पत्र लिखा है। ऐसे में इस मान्यता आंदोलन की प्रदेश स्तरीय कड़ी के अहम भाग सूरतगढ़ ने एक अनूठा तरीका ढूंढा, जिसके चलते वे अपनी भाषा , साहित्य, संस्कृति को तो जीवित कर ही रहे हैं साथ ही भाषा की मान्यता की लड़ाई बहुत ही सुंदर ढंग से लड़ रहे हैं। मान्यता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले राजस्थानी अकादमी व केंद्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत राजस्थानी साहित्यकार मनोज कुमार स्वामी ने 2 वर्षों के अथक प्रयास के बाद राजस्थानी रामलीला का सृजन किया तथा सूरतगढ़ के वार्ड नंबर 4 स्थित करणी माता मंदिर परिसर में विगत 4 वर्षों से राजस्थानी रामलीला का निरंतर मंचन करवाया जा रहा है। जिसमें सभी पात्र , संवाद, पहनावा , लोक संगीत, गीत सब राजस्थानी है। देश की यह इकलौती राजस्थानी भाषा की रामलीला जग चावी बनती जा रही है। इसके माध्यम से कलाकार अपनी मातृभाषा को रामलीला के माध्यम से जीवित करके अनोखे अंदाज में अपनी प्रस्तुति देकर अपनी भाषा को सर्जन करने में लगे हुए हैं। वह निरंतर 4 साल से अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से दर्शकों के मस्तिष्क पर छाप छोड़ रहे हैं।