उन्नत खेती की राह में विलायती बबूल के कांटे
कभी प्रदेशभर के रेगिस्तानी धोरों को हराभरा करने के लिए मरुस्थलीय क्षेत्र में डाले गए विलायती बबूल की झाडिय़ां अब ग्रामीणों एवं राहगीरों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है। एक ओर जहां सडक़ मार्ग के किनारे खड़े इन विलायती बबूल की झाडिय़ों के कारण हादसे हो रहे हैं तो, दूसरी ओर नहर एवं कृषि भूमि के किनारे उगी इन विलायती बबूल की झाडिय़ों से भूमि का उर्वरापन प्रभावित हो रहा है। जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।
श्री गंगानगर
Published: February 21, 2022 12:54:02 am
जैतसर (श्रीगंगानगर). कभी प्रदेशभर के रेगिस्तानी धोरों को हराभरा करने के लिए मरुस्थलीय क्षेत्र में डाले गए विलायती बबूल की झाडिय़ां अब ग्रामीणों एवं राहगीरों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है। एक ओर जहां सडक़ मार्ग के किनारे खड़े इन विलायती बबूल की झाडिय़ों के कारण हादसे हो रहे हैं तो, दूसरी ओर नहर एवं कृषि भूमि के किनारे उगी इन विलायती बबूल की झाडिय़ों से भूमि का उर्वरापन प्रभावित हो रहा है। जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। भूमि का उपजाऊपन कम होने से जमीन बंजर होती जा रही है। ऐसे में बबूल अब समृद्ध क्षेत्र में बंजरपन के कांटे बीज रही है। हालांकि प्रदेश स्तर पर अनेक बार इन विलायती बबूल को कटवाने के लिए विधायक एवं सांसद तक आवाज उठा चुके हैं लेकिन धरातलीय स्तर पर विलायती बबूल खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं।
सडक़ हादसों का कारण बना बबूल
जैतसर कस्बे के नजदीक इंदिरा गांधी नहर की सूरतगढ़ शाखा, गंगनहर की करणीजी वितरिका, केन्द्रीय कृषि राज्य पाऊर्म जैतसर से गांव सात एलसी, मसानीवाला, बाजूवाला की ओर जाने वाली मुख्य संपर्क सडक़ के किनारे उगे विलायती बबूल के कारण अक्सर सडक़ हादसे होते रहते हैं। यहां से गुजरने वाले वाहन चालकों को सडक़ किनारे उगे बबूल व झाड़ झंखाड़ के कारण सामने से आ रहे वाहन दिखाई नहीं देते हैं।
गांव सात एलसी के नजदीक तो अनेक सडक़ हादसे भी हो चुके हंै। किसानों ने बताया कि जिले के विभिन्न सडक़ मार्गों के किनारे उगी विलायती बबूल की झाडिय़ों की झुरमुट के कारण अक्सर सामने की दिशा से आ रहे वाहन दिखायी नहीं देते। इस कारण जिलेभर में अनेक सडक़ भी हो चुके हैं।
वहीं नहरों के किनारे उगी विलायती बबूल के उखडऩे से नहरों के पटड़े भी कमजोर हो रहे हैं एवं नहरों व वितरिकाओं के टूटने की भी आशंका बनी रहती है। सरकार एवं वन विभाग को चाहिए कि विलायती बबूल के स्थान पर अन्य वानस्पतिक पौधे लगाकर भूमि का उपजाऊपन बरकरार रखे।
175 फीट तक गहरी जड़े
विलायती बबूल की जड़े भूमि में अत्यधिक गहराई तक चली जाती हैं। जिससे इसकी कटाई करने के बाद भी यह पुन: पनप जाती है। वनस्पति वैज्ञानिकों की मानें तो विलायती बबूल की जड़े भूमि में करीब 175 फीट की गहराई तक चली जाती है। जिससे यह काटने के बाद भी पूरी तरह समाप्त नहीं होती है एवं अपेक्षित वातावरण पाकर दुबारा पनप जाती है। वहीं विलायती बबूल के आसपास अन्य वनस्पति भी नहीं पनप पाती है। जिससे पर्यावरण पर भी कुप्रभाव पड़ता है। वन भूमि या रिक्त भूमि पर बड़े पैमाने पर उगे विलायती बबूल के जंगलों में वन्य जीव भी नहीं रह पाते हैं। विलायती बबूल के सख्त कांटे वन्यजीवों के लिए भी खतरा साबित हो रहे हैं।

उन्नत खेती की राह में विलायती बबूल के कांटे
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