अपने समाजसेवी कार्यो के कारण अब भी उन जैसा विकल्प बना ही नहीं। अविवाहित रहकर अपना जीवन समाज के लिए लगा दिया। संघर्ष इतना कि आज भी लोग याद करते है। अपने परिवार को राजनीतिक से दूर रखने की नसीहत न केवल दी बल्कि उस पर अमल भी किया। यही वजह है कि केदार नाथ के निधन होने 26 साल बाद भी उनके परिवारिक सदस्य ने किसी भी चुनाव में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई। इलाके से छह बार विधायक बनने और दो बार मंत्री के बावजूद उनके चेहरे पर यह भाव नहीं आया कि वह इतने ऊंचे पद है।
धानक और वाल्मीकि मोहल्ले में खानाकर वहां रहकर अगले दिन घर आना कोई हैरानी वाली बात नही। आज के राजनीतिज्ञ चुनाव के दौरान प्रचार के लिए चंद भाषण दिए और सुविधा शुल्क का आश्वासन देने के बाद अपने घर लौट आते है। लेकिन केदार नाथ ने चुनाव में अपना प्रसार खुद और अनूठे तरीके से करते थे।
जिस बस्ती या मोहल्ले से उनके विरोध होने का फीडबैक मिलता तो वहां चार पांच दिन ठहराव करते, हर घर में जाकर उनकी समस्याओं से रूबरू होते। ऐसा लगाव देखकर विरोधी भी खुद का विरोध छोड़ देते। असीम सादगी से रहनेवाले प्रो केदार इलाके से 6 बार विधायक चुने गए,उनकी लोकप्रियता का प्रतीक इससे बड़ा क्या होगा कि उनकी सोसलिस्ट पार्टी का कोई खास प्रभाव होने होने के बावजूद विधायक बनकर विधानसभा में अपनी बात रखी।देश में जब वर्ष 1977 में आपातकाल लगा था तब भी शर्मा जनता पार्टी से जीते और राज्य सरकार में गृह मंत्री रहे।
वर्ष 1990 में आयोजना मंत्री के रूप में काम किया। 27 मार्च 1993 को जब उनकी मृत्यु हुई तब उनके बैंक में महज एक हजार रुपए ही मिला। अविवाहित और सादा विचार रखने वाले इस जननायक के आखिर सफर में सीएम तक शामिल हुए। शव यात्रा में करवां इतना बढ़ा कि यह पांच किमी पार कर गया था। ज्ञात रहे कि शर्मा रजवाड़ो के दौर में सामंती शासन में बड़ी बहादुरी से आजादी की लड़ाई लड़ी।
चुरू जिले में कोई कांगड़ ठिकाना है,वहां के जागीरदार ने किसानों पीडि़त कर रखा था,जागीरदार का आतंक इतना था कि कोई उस गांव में जाकर उसका मुकाबला करने की हिम्मत नहीं कर पाया।ऐसे आतंक के बावजूद किसानों की मदद के लिये केदार जी कांगड़ गये।जागीरदार के कारिंदों ने केदार जी को बुरी तरह पीटा ओर एक बोरी में बंद कर दिया,जागीरदार ने ब्राह्मण होने के कारण जिंदा छोडऩे का कहकर गांव से बाहर फेंक दिया,पूरे बीकानेर राज्य में बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया इसे इतिहास में कांगड़ कांड के नाम से जाना जाता है। उनके साथ 20 साल तक काम किया बहुत कुछ सीखने को मिला।
शर्मा वर्ष 1962 से 1980 तक और 1985 से 1993 तक विधायक रहे, वर्ष 1980 में खुद चुनाव नहीं लड़ा था। तब पहली बार राधेश्याम गंगानगर ने कांग्रेस के लिए जीत का स्वाद चखा था। गैर कांग्रेस के रूप में केदार नाथ शर्मा पर्याय बन गए थे। उन्होंने वर्ष 1962 में निर्दलीय के रूप में, 1967 में एसएसपी की टिकट से विधायक, 1972 में एसओपी टिकट से विधायक, 1977 में जनता पार्टी की टिकट से विधायक, 1985 में जनता पार्टी से विधायक, 1990 में जनता दल से विधायक बनकर विधानसभा में इलाके की समस्याअेां को न केवल रखा बल्कि उनको हल भी कराया था।
पुरानी आबादी में इस जननायक के आवास के बाहर गरीबों का मसीहा लिखा साइन बोर्ड अंकित है, इस आवास के कक्ष में आदमकद तस्वीरें खुद बयां करती है कि यहां इलाके की समस्याअेां को लेकर लोगों का तांता लगा रहता था। इस आवास में अब शर्मा के भाई के पोत्र पंकज शर्मा परिवार के साथ रहते है।
पंकज शर्मा का कहना है कि केदारजी के भाई और भतीजे सरकारी सेवा में होने के कारण लोगों से मिलने का समय नहीं मिला। हालांकि केदारजी के नाम से शहर में दो चौक है, एक कॉलोनी भी है। इस आवास में अब एकाध लोग ही आते है।