भारतीय किसान संघ की तरफ से प्रज्ञा सिंह और दुकानदारों की तरफ से अधिवक्ता हंसराज चावला ने दलीलें पेश की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने 16 नवंबर को फैसला सुनाने का निर्णय लिया। जिले में श्रीगंगानगर, पदमपुर, रायसिंहनगर, रामसिंहपुर, घड़साना और रावला में नहरों के किनारे दुकानें बना ली थी।
इससे पहले ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने श्रीगंगानगर, पदमपुर, रायसिंहनगर, रामसिंहपुर, घड़साना और रावलामंडी में नहरों के किनारे से दुकानों, मकानों आदि को हटाया था। लेकिन दुकानदारों ने मामले को अदालत में चुनौती दी थी। इन दुकानदारों का कहना था कि उनके पास दुकानों के पट्टे हैं तो ये अतिक्रमण कैसे हो सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ भारतीय किसान संघ ने आपत्ती जताते हुए नहर में हो रहे प्रदूषण के मुद्दे को उठाया। इनका तर्क है कि यह पानी सिर्फ फसलों की सिंचाई के ही काम नहीं आ रहा है, बल्कि इसी पानी का पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। जबकि दुकानदार और नहरों के किनारे बने मकानों में रहने वाले लोग नहरों में कचरा डालकर इसे प्रदूषित कर रहे हैं।
यह था मामला
जिला मुख्यालय पर ए माइनर किनारे बने मकानों और दुकानों को अतिक्रमण बताकर भारतीय किसान संघ ने मुद्दा उठाया था। इसमें यह पहलू रखा गया था कि श्रीगंगानगर, पदमपुर, रायसिंहनगर, रामसिंहपुर, घड़साना और रावला कस्बे में से गुजरने वाली नहरों के किनारे दुकानदार और रेस्टारेंट संचालक अपनी गंदगी नहरों में डालते हैं। यह पानी सिंचाई के अलावा ग्रामीणों के लिए पीने के लिए इस्तेमाल होता है। ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश पर जिला मुख्यालय पर जिला प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के आदेश किए थे।
लेकिन, ए माइनर किनारे संघर्ष समिति और जिला प्रशासन के बीच सुलह हो गई और ए माइनर से करीब तीस फीट अतिक्रमण खुद हटा लिए गए थे। अन्य कस्बों में यह अतिक्रमण नहीं टूटा तो हाईकोर्ट ने यह मामला पानी प्रदूषण का मानते हुए इसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का क्षेत्राधिकार बताया। इस पर दुकानदारों और किसान संघ दोनों पक्ष इस नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया।