भोपाल में बहुत सारी मस्जिदों के नाम उन समय की नवाब बेगमों के नाम पर रखे गए हैं। आज भी वे मस्जिदें उन्हीं नामों से पहचानी जाती हैं। कुलसुम बिया मस्जिद, नन्हीं बी मस्जिद, मांजी साहिबा, जीनत उल मसाजिद आदि नामों के साथ शहर की मस्जिदें नारी शक्ति की महत्वाकांक्षा को प्रकट करती हैं। इसके अलावा, भोपाल की मस्जिदों के नाम में फल, फूल और पेड़-पौधों के नाम भी होते हैं। इसलिए, यहां की मस्जिदों को आम वाली मस्जिद, जामुन वाली मस्जिद, कबीट वाली मस्जिद, अरीठे वाली मस्जिद, बड़ वाली मस्जिद आदि के नाम से जाना जाता है।
भोपाल शहर में एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मसाजिद है। यह मस्जिद नवाब शासन के अंतिम दिनों में बनाई गई थी। इसकी विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां दुनियाभर के लोग आते हैं। और एशिया की सबसे छोटी मस्जिद भी यही है, जिसे ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद कहा जाता है। यह मस्जिद महल की सुरक्षा में तैनात सिपाहियों की इबादत के लिए बनाई गई थी।
रोज़ाना सुबह के वक्त फजर की नमाज की शुरुआत होती है, जब मस्जिदों से अजान की आवाज़े सुनाई देती हैं। शहर की मस्जिदों के प्रबंध समितियों ने अलग-अलग समयों को तय किया है, ताकि लोगों को नमाज पढ़ने में आसानी हो। सूर्यास्त के साथ होने वाली मगरीब की नमाज की अजान भी होती है। इसके कारण सभी मस्जिदों से एकसाथ अजान की आवाज़े सुनाई देती हैं, जिससे शांति और सुकून का माहौल बना रहता है।
तीनों जिलों की मस्जिदों की देखभाल
नवाब और शासन के बीच एक समझौते के तहत, भोपाल रियासत की मस्जिदों की देखभाल के लिए एक सरकारी एजेंसी, मसाजिद कमेटी को स्थापित किया गया। इस कमेटी को हर साल सरकारी धन से चलाया जाता है और यह तीनों जिलों की मस्जिदों की देखभाल करती है, साथ ही मस्जिदों के इमाम और मुअज्जिन को वेतन देती है। इस तरह की कमेटी शायद ही देश में किसी अन्य जगह में हो।