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देश को आजाद कराने में शहीद हो गए थे ये गुमनाम हीरो

हम आपको बता रहे हैं कुछ गुम कुर्बानियों के बारे में 

Aug 15, 2017 / 04:28 pm

sharad asthana

मुरादाबाद। आज हम भारत की आजादी का जश्न मना रहे हैं। भारत के 125 करोड़ लोग तिरंगा फहराकर भारत की आजादी के जश्न में डूबे हैं। एक बार आजाद मुल्क में सांस लेकर हम उन शहीदों को याद करेंगे, जिनकी कुर्बानियों से हमको आजादी मिली। उसके लिए हमारे पूर्वजों ने कितनी ही कुर्बानियां दीं। उसमे से हमें कुछ कुर्बानी याद हैं और कुछ इतिहास के पन्नों में गुम हो गईं। ऐसी ही कुछ गुम कुर्बानियों के बारे में हम आपको बता रहे हैं।
सूफी अम्बा प्रसाद

सूफी अम्बा प्रसाद के पिता गोविंद प्रसाद भटनागर मुरादाबाद के अगवानपुर के रहने वाले थे। 1835 में वह शहर के कानून गोयन मोहल्ले में आकर रहने लगे थे। यहां आकर उन्होंने अपना छापा खाना यानी अखबार चलाने के लिए प्रिंटिंग मशीन लगाई। माना जाता है क‍ि सूफी अंबा प्रसाद का जन्म 1858 में हुआ था। उनको हिंदी, उर्दू, फारसी का बहुत अच्छा ज्ञान था। 1887 में उन्होंने सितारे हिंद अखबार निकाला था। 1890 में जमा-बुल-उलूम नाम से पत्रिका शुरू की थी। अखबार और पत्रिका दोनों उर्दू में थीं। अखबार के माध्यम से वह लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे। अंग्रेजों को यह बात अच्छी नहीं लगी और अंबा प्रसाद की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज दबिश देने लगे। अंग्रेजों से बचने के लिए वो 1905 में मुरादाबाद से पंजाब निकल गए। इनकी मृत्यु ईरान में हुई थी, जहां आज भी ईरान में उनकी मजार पर मेला लगता है। कानून गोयन में आज भी छापा खाना है।
शहीद हुए कई गुमनाम

सन् 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन चलाने के लिए मुरादाबाद के टाउनहाल पर हजारों की संख्या में लोग एकत्र हुए थे। अंग्रेजों ने इन आंदोलनकारियों को ति‍तर-बितर करने के लिए गोली चलवा दी, जिसमें मदन मोहन, रहमत उल्लाह, लतीफ अहमद, नजीर अहमद और चार गुमनाम लोग शाहिद हो गए। इसके विरोध में जामा मस्जिद पर सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
नहीं पता चला शहीदों का

9 अगस्त 1942 को मुरादाबाद जिले के लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके विरोध में 10 अगस्त को राम मोहन लाल के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला जा रहा था। पान दरीबा पर जुलूस निकाल रहे लोगों को ति‍तर-बितर करने के लिए अंग्रेज डीएम वा पुलिस कप्तान ने गोली चलवा दी, जिसमें मोती लाल, मुमताज खां, झाऊलाल, राम प्रकाश और 11 वर्षीय जगदीश शाहिद हो गए। सैकड़ों घायल आंदोलन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। सैकड़ों शहीदों का अता-पता तक नहीं चला, जिसके विरोध में कांकाठेर व मछरिया रेलवे स्टेशन जला दिया गया। शहीदों की याद में है पान दरीबा पर शहीद स्मारक बना हुआ है।

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