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आस्था की अर्थव्यवस्था

मुद्दा ये हैं कि इस देश में, बाबा और फकीरों का चोला ओढ़ कर आस्थाओं का शोषण करने वाले लोग कैसे अपनी जगह बना लेते हैं…?

जयपुरSep 13, 2017 / 06:54 pm

पुनीत कुमार

विशाल ‘सूर्यकांत’
 

कहते हैं कि ये देश आस्था से चलता है। हर धर्म, हर मजहब के लोगों के लिए इस देश में आध्यात्म और धर्म के रास्ते एक मनोवैज्ञानिक संबल हमेशा से वजूद में रहा है। लेकिन जब आस्था का यही मनोवैज्ञानिक संबल, शोषण की शक्ल अख्तियार कर लें तब गुरमीत सिंह उर्फ बाबा राम रहीम जैसे चेहरे सामने आते हैं। मुद्दा ये हैं कि कैसे इस देश में, बाबा और फकीरों का चोला ओढ़ कर आस्थाओं का शोषण करने वाले लोग अपनी जगह बना लेते हैं…? मौजूदा दौर में ऐसे बाबाओं की बढ़ती फेहरिस्त देखकर वाकई हैरानी होती है।
 

 

एक नया सवाल भी जेहन में पैदा हो रहा है कि आखिर क्या वजह है इसकी ? क्या धर्म,महजब को निभाने के परम्परागत तरीके, परम्परागत संस्थान, लोगों को वो संबल,सांत्वना या विश्वास नहीं दे पा रहे हैं जो उन्हें चाहिए ? या आस्था से अपनी अर्थव्यवस्था बनाने वाले ज्यादा सुनियोजित तरीके से काम करते हैं। दरअसल, मुद्दा इसीलिए उठ रहा है अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की ओर से 14 उन लोगों के नाम जारी किए गए हैं, जिन्हें अखाड़ा परिषद फर्जी बाबा मानता है। इस खबर से निकल रहे हैं मुद्दों के कई सिरे, जिन पर बात होनी ज़रूरी है।
 

देखिए वीडियो- जिनमें कुछ बाबाओं की फेहरिस्त जारी अखाड़ा परिषद ने कर दी है नई शुरुआत…

धर्म से जुड़े कई पहलू इस चर्चा में आएंगे लेकिन यहां ये स्पष्ट करना जरूरी है कि इस बहस में उन कथित संतों,फक़ीर और धर्मगुरूओं की बात होगी, जो अपने कारनामों से विवादों में रहे हैं। इस पूरी बहस की शुरूआत करते हुए हम उन सभी संत,फकीर और धर्मगुरूओं के प्रति अपनी पूरी आस्थाा और श्रद्धा रखते हैं जो वाकई समाज सुधारक हैं, धर्म पारायण हैं और जिनकी बांतों से सदकर्म की प्रेरणा मिलती है, सर्वशक्तिमान में आस्था बढ़ती है। लेकिन धर्म के मुद्दे पर लगता है कि अब बहस जरूरी है…।
 

 

अखाड़ा परिषद ने जिन बाबाओं के नाम जारी किए हैं, उनमें – आसाराम बापू उर्फ आशुमल शिरमलानी, सुखबिंदर कौर उर्फ राधे मां, सच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम सिंह, ओमबाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद,ओम नमः शिवाय बाबा, नारायण साईं, रामपाल, आचार्य कुशमुनि,वृहस्पति गिरी,मलखान सिंह के नाम शामिल है।
 

 

इन सभी का नाम विवादों के चलते सूर्खियों में रहा है। अखाड़ा परिषद को अब लगने लगा है कि अगर एक्शन नहीं लिया गया तो साधू-संतों से लोगों का विश्वास उठने लगेगा। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने फर्जी बाबाओं की लिस्ट जारी की है। इलाहाबाद में रविवार को इस संबंध में अखाड़ा परिषद की बैठक हुई थी। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने ऐसे बाबाओं की लिस्ट जारी की। अखाड़ा परिषद का दावा – ये बाबा धर्म के नाम पर फर्जी तरीके से लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
 

देखिए वीडियो के इस हिस्से में, जहां ज्योतिषाचार्य डॉ.आचार्य महेन्द्र मिश्रा, कर्मकांडी पंडित जुगल किशोर शर्मा,समाजशास्त्री डॉ.प्रज्ञा शर्मा और वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा के नजरिए से बाबाओं के तिलिस्म की क्या है वजह ?
दरअसल, परम्परागत धार्मिक संस्थान और संगठनों से अलग इन बाबाओं के पनपने के पीछे कई धार्मिक और सामाजिक कारण हैं।

 

 

मसलन, इसीलिए पनपते हैं नए धार्मिक गुरू- 

 
सामाजिक-आर्थिक रुप से कमजोर की उपेक्षा।

समाज में सभी बराबरी का हक़ नहीं मिलता।

इंसान को दुत्कारा या धिक्कारा की परम्परा।

धर्मस्थानों में भी जाति,धर्म,पंथ,रंग-रूप को लेकर हीन भावनाएं।

परिवार की परेशानियों में आध्यात्मिक संबल की जरूरत।
गुरु से जुड़े लोगों के जरिए नया समाजिक परिवेश मिलता है।

ऐसे स्थानों पर अतीत को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता।

धर्मस्थान सिर्फ पूजा-पाठ और धर्म की व्याख्या तक सीमित हो गए।
नए दौर के धर्मगुरु सामाजिक और पारिवारिक बुराइयों में भी दखल रखते हैं।

सामाजिक संगठनों के जरिए राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता।

सामाजिक सुरक्षा का भाव,अपनत्व मिलता है।

सुख-दुख का साथी बनने का आत्मिक और आध्यात्मिक भाव मिलता है।
 

 

गुरु गोविंद दोऊ खड़े,काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए…कबीर की इन पंक्तियों पर अमल जरूर करें लेकिन सद्गुरु को खोजना जरूरी है। आडम्बर,चमत्कार जीवन शैली का हिस्सा नहीं है। संत ऐसा चुनिए जो जीवन शैली बदले, जीने का सही सलीका सीखाए…सबसे बड़ा गुरू, आपके अपने कर्म है जो खूबियां और खामियां सीखाते हैं। किसी व्यक्ति के सद्कर्मों के प्रति आस्था रखना गलत नहीं, संत की सेवा भी गलत नहीं… लेकिन अपने भीतर सवालिया संस्कृति को भी जिंदा रखें ताकि आपकी आस्था से कोई खिलवा़ड़ न कर सके।
 

जुड़िए डिबेट के इस आखिरी हिस्से में, जहां फर्जी बाबाओं की रोकथाम के तरीकों पर हो रही है बात

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