लोकसभा चुनाव से पहले बीजापुर में बड़ा नक्सली मुठभेड़, ढेर हुए महिला समेत 6 नक्सली, जारी है फायरिंग
भाजपा ने 2023 के उत्तरार्ध में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में वापसी की। पार्टी इससे पूर्व प्रदेश में 15 वर्ष सत्ता में रही, लेकिन 2018 में जनता ने बाजी पलटते हुए कांग्रेस को जनाधार दे दिया। भाजपा के लिए ये तगड़ा झटका था। पार्टी ने सबसे पहले अंदरूनी कलह खत्म की और पांच वर्ष में ही प्रदेश की कमान फिर से हासिल कर ली। विधानसभा में जीत का उत्साह और लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की लहर को भांप कर भाजपा ने छत्तीसगढ़ की समस्त सीटों के प्रत्याशियों के नाम एक बार में ही तय कर दिया। पार्टी का ये कदम इसलिए भी कारगर सिद्ध हुआ क्योंकि इससे किसी भी प्रकार के भितरघात की सम्भावना ही खत्म हो गई।कांग्रेस को उम्मीदवारों के चयन के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा। पहले तो पार्टी यही तय नहीं कर पाई कि किस पर दांव खेले – नए चेहरों पर या विधानसभा चुनाव में लाज बचाने वाले जिताऊ घोड़ों पर। प्राथमिक स्तर पर तो कांग्रेस में संभावित नामों पर ही सहमति नहीं बनी। पार्टी हलकों में चर्चा थी कि मोदी लहर का प्रभाव देख कर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनावी रण में उतरने को ही तैयार नहीं थे। हालांकि उन्हें अनमने ढंग से सहमति देनी पड़ी जब उनसे कहा गया कि उन्हें पूरे मोर्चे का नेतृत्व चुनाव लड़कर करना होगा, केवल प्रचारक बन कर नहीं। बघेल की सहमति के साथ पार्टी ने जैसे तैसे छह नामों की पहली सूची जारी की। इसके बाद बस्तर के नाम पर माथापच्ची शुरू हुई। कांग्रेस ने इस सीट पर बड़ा फैसला लेते हुए अपने जीते हुए सांसद दीपक बैज को दरकिनार कर कवासी लखमा के नाम की दूसरी सूची जारी की। अंत में आई तीसरी सूची जिसमें कांग्रेस ने फिर एक बार चौंकाया और चार नामों की घोषणा की जिनमें विवादों में घिरे भिलाई नगर के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर से लड़ाने का निर्णय लिया गया।
नाम घोषणा के दो दिन बाद FIR, कवासी लखमा भारत के पहले प्रत्याशी, गिरफ्तारी कभी भी
दोनों दल दावा कर रहे हैं कि उन्होंने हर सीट पर सही चेहरे को मौका दिया है और जनता उनका साथ अवश्य देगी। छत्तीसगढ़ में लोक सभा चुनावों में सदा से भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भाजपा 2004, 2009 और 2014 में लगातार 11 में से 10 सीटों पर जीत हासिल करती रही। वर्ष 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार दूसरा खाता खोला और कोरबा के अलावा बस्तर में विजय हासिल की। इस बार भाजपा प्रदेश में क्लीन स्वीप करने के मूड में है और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं जीतने देने की बात कह रही है। उधर कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। पार्टी अपना दो सीट बचाने के साथ-साथ यदि तीसरा खाता खोलने में सफल होती है तो ये उसके लिए बड़ी जीत से कम नहीं होगी।