रंग पंचमी को लेकर यहां एक कहानी सुनाई जाती है। कहानी में बताया जाता है कि कई साल पहले एक मंदिर में महिलाओं ने मांग की थी कि होली पर उन्हें भी एक समान रंग खेलने का मौका मिलना चाहिए। महिलाओं का कहना था कि पुरुषों के लिए तो भगवान के दरबार होली पर सभी जगह खुले रहते हैं, लेकिन पुरुषों के सामने महिलाएं होली नहीं खेल पाती थीं। इसलिए मंदिर के पंडितों और बुजुर्गों ने फैसला किया कि रंग पंचमी के दिन मंदिर में केवल महिलाएं ही आएंगी और होली खेलेंगी। उसके बाद से महिलाएं रंग पंचमी को भगवान श्रीकृष्ण के साथ होली खेलने के लिए मंदिर आती हैं, ये परंपरा 46 साल पहले शुरू हुई थी, जो आज भी जारी है। इस आयोजन में महिलाएं, बेटियां पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में लीन होकर रंग खेलती हैं और गीतों का आनंद लेती हैं।
होली के दिन जहां पुरुष होली खेलते हैं, तो जहां रंगपंचमी पर केवल महिलाओं को ही मंदिर के अंदर प्रवेश दिया जाता है। पुरुषों की नो एंट्री होती है। हालांकि, व्यवस्था बनाने वाले एक-दो पुरुष ही मंदिर परिसर में रुकते हैं। इस दिन पुरुष शाम को आरती होने के बाद ही बिहारी जी के दर्शन कर सकते हैं। इस इलाके को मिनी वृंदावन के नाम से भी जाना जाता है।