रंग तेरस सांस्कृतिक महोत्सव और सामाजिक एकता का प्रतीक
रंग तेरस पर्व न केवल एक उत्सव है बल्कि यह स्थानीय लोगो का गर्व है जो उनकी इस ऐतिहासिक परम्परा को जीवंत रूप प्रदान करता है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करते है जो आज के समाज में एकता और समरसता के भाव पैदा करता है। इस प्रकार रंग तेरस पर्व ,सामाजिक सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देता है और पुरानी परंपराओं को संजीवनी देता है। इस दिन गांव में 36 कौम के सर्वसमाज के लोगों का मिलनसार भाव देखने को मिलता है।
बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी उम्र के लोग सजते है
दिन का कार्यक्रम होने के बाद शाम को गांव के युवा और बुजुर्ग सभी सफेद कुर्ता व धोती और लाल पगड़ी जिस पर मोर कलंगी साथ ही कमर पर कटार धारण कर सजते है।रात को करीब 9 बजे तीनों समाज अपने अपने चौक मेनारिया समाज (लक्ष्मी नारायण चौक) जणवा समाज (चारभुजा चौक) जाट समाज (जाटों की बावड़ी चौक) में एकत्रित होते है। जहां ढोल व थाली की लयताल पर बच्चे,युवा ओर बुजुर्ग जबरी गेर नृत्य करते हैं, इसके बाद पट्या ,तलवार बाजी, आग के गोलों से हैरत अंगेज खेल,बावजी,नेजा आदी कार्यक्रम प्रस्तुत करते है। अंत में आतिशबाजी व तोप चलाकर समापन किया जाता है। आयोजन में गांव के तीनों मुख्य समाज के साथ गांव की समस्त समाज के लोग भाग लेते है।
नैजा निकालना भी परंपरा में है शामिल
रंग तेरस महोत्सव के रंगारंग कार्यक्रम के समापन के तुरंत बाद गांव की महिलाएं दो लाइन बनाती है और अपने हाथ में आंक के पौधे की टहनियां लेकर खड़ी हो जाती है इसके बाद पुरुष वर्ग इस लाइन के बीच में से निकलता है और महिलाएं उन पर आकडें की टहनियों से मारती है। इसके पीछे एक मान्यता यह भी है की जो इस नैजा में से निकलता है वह सालभर बीमार नहीं होता है।
लोकप्रियता
रंग तेरस की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि यहां पर प्रति वर्ष बड़ी संख्या में देशी ओर विदेशी पर्यटक कला और संस्कृति का लुफ्त उठाने रुण्डेड़ा गांव आते है । वे ग्रामीणों के साथ जमकर रंग तेरस खेलते है।