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उदयपुर

अनूठी परंपरा : यहां गेर नृत्य के साथ कीचड़ में लोटपोट होते है पुरुष

कला व संस्कृृति का संगम है रुण्डेड़ा का ऐतिहासिक पर्व रंग तेरस, जीवंत परंपरा और सांस्कृतिक विरासत को देखने आते है देसी विदेशी लोग

उदयपुरMar 30, 2024 / 05:10 pm

Shubham Kadelkar

अनूठी परंपरा : यहां गेर नृत्य के साथ कीचड़ में लोटपोट होते है पुरुष

फाइल फोटो

राजकुमार मेनारिया/रुण्डेड़ा(उदयपुर). उदयपुर जिले से 50 किलोमीटर दूर रुण्डेड़ा गांव में करीब 457 सालों से रंगतेरस पर्व मनाते आ रहे है। इस साल यह त्योहार 6 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन पूरे गांव को फूल मालाओं व विशेष रोशनी से सजाया जाता है। 11 हजार जनसंख्या की आबादी वाला वल्लभनगर उपखण्ड क्षेत्र का यह सबसे बड़ा गांव है।
रुण्डेड़ा गांव में होली के बाद ठीक तेरहवें दिन गांव के लक्ष्मीनारायण मन्दिर के चबूतरे पर प्रातः 4 बजे एड़ा का ढ़ोल बजने के साथ ही रंगतेरस पर्व का आगाज हो जाता है। ग्रामीणों को इस ऐतिहासिक पर्व की सूचना देने के बाद दिन में करीब 12 बजे गांव के उत्तर दिशा में तालाब के पास स्थित जत्तीजी कलदास महाराज की धूणी पर गांव के तीनों समाज (मेनारिया,जाट,जणवा,) के पंच व लोग ढोल,थाली ओर मादल के साथ पहुंचते है। वहां पर पूजा अर्चना कर जत्तीजी का ध्यान कर उन्हें कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आमन्त्रित करते है। उसके बाद ग्रामीण वहां से रवाना होकर मार्ग में डेमन बावजी को भी आमंत्रित करते है। जहां से वे गांव के बड़े मंदिर पहुंचते है वहां रस्म के बाद गेर नृत्य शुरू किया जाता है। कुछ देर नृत्य करने के बाद ग्रामीण यहां से तलहटी मंदिर ,निंबडिया बावजी,जूना मंदिर गेर खेलते हुए लक्ष्मीनारायण मंदिर पहुचते है जहां पर भारी भीड़ व रंगों की बौछार के साथ जबरी गेर होती है। गेर के साथ ही युवाओं की टोलियां ग्रामीणों को उठाकर मंदिर के पीछे की तरफ बनाए कीचड़ के गड्ढे में ले जाकर डालते है। कीचड़ के गड्ढे में सभी पुरुष वर्ग को लोटपोट किया जाता है इसके बाद सभी गेर खेलते हुए महादेव मंदिर जणवा मंदिर होते हुए वापिस बड़ा मंदिर पहुंचते है। जहां पर दिन का कार्यक्रम समाप्त होता है।

रंग तेरस सांस्कृतिक महोत्सव और सामाजिक एकता का प्रतीक
रंग तेरस पर्व न केवल एक उत्सव है बल्कि यह स्थानीय लोगो का गर्व है जो उनकी इस ऐतिहासिक परम्परा को जीवंत रूप प्रदान करता है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करते है जो आज के समाज में एकता और समरसता के भाव पैदा करता है। इस प्रकार रंग तेरस पर्व ,सामाजिक सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देता है और पुरानी परंपराओं को संजीवनी देता है। इस दिन गांव में 36 कौम के सर्वसमाज के लोगों का मिलनसार भाव देखने को मिलता है।

बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी उम्र के लोग सजते है

दिन का कार्यक्रम होने के बाद शाम को गांव के युवा और बुजुर्ग सभी सफेद कुर्ता व धोती और लाल पगड़ी जिस पर मोर कलंगी साथ ही कमर पर कटार धारण कर सजते है।रात को करीब 9 बजे तीनों समाज अपने अपने चौक मेनारिया समाज (लक्ष्मी नारायण चौक) जणवा समाज (चारभुजा चौक) जाट समाज (जाटों की बावड़ी चौक) में एकत्रित होते है। जहां ढोल व थाली की लयताल पर बच्चे,युवा ओर बुजुर्ग जबरी गेर नृत्य करते हैं, इसके बाद पट्या ,तलवार बाजी, आग के गोलों से हैरत अंगेज खेल,बावजी,नेजा आदी कार्यक्रम प्रस्तुत करते है। अंत में आतिशबाजी व तोप चलाकर समापन किया जाता है। आयोजन में गांव के तीनों मुख्य समाज के साथ गांव की समस्त समाज के लोग भाग लेते है।

नैजा निकालना भी परंपरा में है शामिल
रंग तेरस महोत्सव के रंगारंग कार्यक्रम के समापन के तुरंत बाद गांव की महिलाएं दो लाइन बनाती है और अपने हाथ में आंक के पौधे की टहनियां लेकर खड़ी हो जाती है इसके बाद पुरुष वर्ग इस लाइन के बीच में से निकलता है और महिलाएं उन पर आकडें की टहनियों से मारती है। इसके पीछे एक मान्यता यह भी है की जो इस नैजा में से निकलता है वह सालभर बीमार नहीं होता है।

लोकप्रियता
रंग तेरस की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि यहां पर प्रति वर्ष बड़ी संख्या में देशी ओर विदेशी पर्यटक कला और संस्कृति का लुफ्त उठाने रुण्डेड़ा गांव आते है । वे ग्रामीणों के साथ जमकर रंग तेरस खेलते है।

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