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योजनाओं से कोसों दूर है यह गांव, दिन में फोर्स व रात में जनताना सरकार से डरे सहमें रहते है ग्रामीण

locationसुकमाPublished: Oct 25, 2018 02:48:04 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

गांव में जनताना सरकार का राज फरमान को मानना बनी मजबूरी

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योजनाओं से कोसों दूर है यह गांव, दिन में फोर्स व रात में जनताना सरकार से डरे सहमें रहते है ग्रामीण

सुकमा. ग्राम पंचायत डब्बा के झोपड़ो में रहने वाले सैकड़ो आदिवासी परिवार आज भी विकास से अनजान हैं। यहां के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य सहित जर्जर सड़को की समस्या से जूझ रहे हैं। वही गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है। ग्रामीण मनरेगा के तहत कामों में मजदूरी करते है। लेकिन समय पर मजदूरी भुगतान नहीं मिलती हैं। जिसके कारण ग्रामीणों के घरो में आर्थिक संकट बना हुआ है।
गांव में माओवाद के दस्तक के चलते लगातार सरकारी योजनाओ से दूर हैं। गांव में जनताना सरकार का राज हैं। माओवाद फरमान को मानना गांव के लोगों की मजबूरी बनी हुई हैं। ग्रामीणों की जिंदगी दो पाटों के बीच पीस रही हैं। शौचालय, प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला गैस समेत सभी योजनाओं पर माओवादियों की रोक लगी हुई हैं। जिसके कारण चाह कर भी आदिवासी परिवार योजानाओं का लाभ नहीं ले पा रहें हैं। आजादी के 67 साल बाद भी डब्बा गांव में बिजली नहीं पहुंची है।

चिमनी के सहारे जिंदगी कट रही है। वहीं इस गाँव के लोगों को पेट की भूख बूझाने के लिए 20 किमी दूर दंतेवाडा जिले के कटेकल्याण पैदल जाना पड़ता है। सुकमा दंतेवाड़ा जिले की सरहद पर बसा गांव डब्बा जहां खुले आम माओवादियों की हुकूमत चलती हैं। इसलिए गांव में कोई सरकारी योजना लागू नहीं है। इस गाँव में हर वक्त माओवादियों की आवाजाही रहती हैं। एक तरह से अघोषित माओवादियों की राजधानी माना जा सकता हैं।

माओवाद हुकूमत के कारण सरकारी योजनाओं पर रोक
गांव डब्बा जिसमें 4 पारा है। जिसकी जनसंख्या 1225 है। जहां गांव में समस्याओं का वर्षो से अम्बार लगा है वही दिन में फोर्स और रात में माओवादियों की आवाजावी से गांव के लोग डरे सहमे रहते हैं।

छह आंबा व चार प्राशा एक में भी भवन नहीं
डब्बा में 6 आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हैं लेकिन आज तक एक भी भवन नहीं बना है। भवन के अभाव में झोपडी में आंगनबाडी केन्द्र लग रहे है। यही हाल स्कूली शिक्षा का हैं। 4 प्राथिमक शाला लग रही है किसी प्राथमिक शाला में भवन नहीं हैं। वहीं गांव में आठ बोरिंग हैं जिसमें दो बोरिंग खराब पड़ा हैं और 02 बोरिंग में आयरन युक्त पानी निकल रहा हैं। जिसके कारण ग्रामीण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। हैंडपंपों के आसपास गन्दगी बनी हुई हैं। वही गांव में सिंचाई के कोई साधन नही हैं। सभी परिवार परम्परिक खेती और वनोपज टोरा, महुअ,ा इमली और तेंदूपत्ता संग्रहण कर अपनी जीविका चला रहे हैं। ग्रामीण भीमा ने बताया की गाँव में अफसर कभी नहीं पहुंचते। किसको समस्या बताएं। सचिव को कई बार सीसी सड़क और हैंडपंप सुधारने की बात बोले लेकिन कोई ध्यान दिया।

माओवाद के कारण केवल गांव में बुजुर्ग
गांव में माओवादियों की आवाजावी के चलते युवा वर्ग गांव में रहना पसंद नहीं करते हैं। लगातार युवा आंध्रा या सुकमा जिला मुख्यालय आकर मजदूरी या अन्य कार्य कर जीवन.यापन करने के लिए विवश हैं। गांव में सैकड़ो एकड़ जमीन हर साल खाली पड़ी रहती हैं। माओवाद दहशत के चलते लोग खेती भी नहीं कर रहे हैं। गांव में बुजुर्ग ही हैं युवा गांव से कोसो दूर रोजगार की तलाश में चल दिए है।

स्वास्थ्य सुविधाएं शून्य
डब्बा में उपस्वास्थ्य केंद्र स्वीकृत हैं वो केवल कॉगजों में संचालित है। गांव में डॉक्टर, नर्स भी पदस्थ नहीं हैं। स्वास्थ्य सेवा नहीं हैं, मरीजो
को इलाज के लिए दंतेवाडा जिला 40 किमी दूरी तय कर जाना पड़ता हैं। महिलाओं को प्रसव भी दाई के भरोसे हो रहा हैं। गांव में नेटवर्क नहीं होने से लोगों को 102 और 108 सेवा का लाभ नहीं मिल पा रहा हैं। कई बार गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में घर में ही दम तोडऩा पड़ता हैं। गाँव वालों ने बताया कि कुछ माह पहले सोमड़ी को प्रसव होने वाला था तो चारपाही में अस्तपताल ले गए थे। जर्जर गली और सड़क मार्ग है। गांव के मुख्य मार्ग को जोडऩे वाली डब्ल्यूबीएम सड़क जर्जर हो चुकी हैं।

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