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दक्षिण का अयोध्या कहे जाने वाले इस मंदिर में पहली बार रामनवमीं में नहीं जुटे श्रद्धाल, पढ़िए मंदिर की अनोखी कहानी

locationसुकमाPublished: Apr 03, 2020 03:42:06 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

दक्षिण की अयोध्या है भद्राचलम, राम-सीता और लक्ष्मण ने वनवास का लंबा वक्त काटा था यहा, कोरोना की वजह से इस बार यहां नहीं जुटे श्रद्धालु, हर साल तेलंगाना के सीएम समेत लाखों भक्त आते हैं

दक्षिण का अयोध्या कहे जाने वाले इस मंदिर में पहली बार रामनवमीं में नहीं जुटे श्रद्धाल, पढ़िए मंदिर की अनोखी कहानी

दक्षिण का अयोध्या कहे जाने वाले इस मंदिर में पहली बार रामनवमीं में नहीं जुटे श्रद्धाल, पढ़िए मंदिर की अनोखी कहानी

जगदलपुर, कोंटा. रामनवमी के मौके पर गुरुवार को कोंटा से ६८ किमी दूर स्थित सीताराम स्वामी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गई। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि यहां रामनवमी पर आम श्रद्धालु पूजन में शामिल नहीं हो पाए। सिर्फ मंदिर के पुजारियों और तेलंगाना के धर्मस्व मंत्री इंद्रकरण रेड्डी व स्थानीय विधायक विरैय्या समेत गिने-चुने लोग ही मंदिर में पूजन के दौरान मौजूद थे। मंदिर तेलंगाना भद्राचलम में स्थित है। इसे आंध्र का अयोध्या कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मंदिर के अलावा इस पूरे इलाके में श्रीराम के वनगमन के जीवंत साक्ष्य मिलते हैं।

जहां मंदिर वहीं कुटी बनाकर रहे थे श्रीराम
श्री सीताराम स्वामी मंदिर गोदावरी के तट पर बना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर उसी स्थान पर निर्मित है जहां पर्णकुटी बनाकर भगवान राम ने वनवास का लंबा वक्त बिताया था। यहां मौजूद कुछ शिलाखंडों के बारे में किंवदंती है कि सीताजी ने वनवास के दौरान यहां अपने वस्त्र सुखाए थे। कुछ मान्यताओं के अनुसार रावण ने सीताजी का अपहरण यहीं से किया था।

मंदिर निर्माण की अनोखी कथा
इस स्थान के वनवासियों की एक जनश्रुति के अनुसार यहां पर राम मंदिर बनने के पीछे की कहानी बेहद अनोखी है। कहते हैं कि दम्मक्का नाम की रामजी की एक भक्त वनवासी महिला भद्रिरेड्डी पालेम ग्राम में रहती थी। उसका राम नाम का एक गोद लिया हुआ पुत्र भी था। एक दिन वह पुत्र वन में खो गया और उसे खोजते हुए दम्मक्का जंगल में पहुंची। जब वो पुत्र का नाम राम कहकर पुकार रही थी तो उसे एक गुफा में से आवाज आई कि माता मैं यहां हूं। वहां पहुंचने पर दम्मक्का को सीताराम और लक्ष्मण की प्रतिमाएं मिलीं। भक्ति से विभोर दम्मक्का को अपना पुत्र भी उसी स्थान पर मिल गया। तब उसने संकल्प किया कि वो इसी स्थान पर श्री राम का मंदिर बनायेगी। इसके पश्चात उसने बांस की छत बनाकर एक अस्थाई मंदिर निर्मित कर दिया।

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