कादीपुर नामक स्थान भी बाबा सत्यनाथ के द्वारा बसाया गया है, क्योंकि अघोर परम्परा में साधना की 5 धाराएं हादि, कादि, ओमादी, वागादि, प्रणवादि के माध्यम से अघोर साधक अपने स्तर से साधनाएं करता है। बाबा सत्यनाथ कादिधारा के प्रवर्तक थे। बाबा के द्वारा बसाये गए गांव या नगर कादीपुर कहलाए इस स्थान पर अभी भी कादिधारा यन्त्र विद्यमान है जो आम जन के दर्शनार्थ मंदिर में शिवलिंग और अर्घा के रूप में रखा गया है।
इस क्षेत्र में अघोर परम्परा के नव नाथों में प्रथम नाथ ब्रम्हा के अवतार जिनका स्वरूप जल है। ऐसे अघोराचार्य बाबा सत्यनाथ के बारे में अनेक चमत्कारिक किंवदन्तिया, कहानियां आदि अभी भी गावों में प्रचलित हैं। इस साधना स्थल पर अनेक सिद्ध सन्यासियों, अघोरियों ने साधना करके पराशक्तियों को अर्जित कर अपने जीवन को सुगम व सरल बनाया है। पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह स्थान प्राचीनकाल का युद्धस्थल है। यह स्थान अल्देमऊ भरो के शासनकाल में प्रतापी भर राजा अल्दे की राजधानी हुआ करती थी।
इसका प्रमाण यहां खंडहर में परिवर्तित किला व किले की दीवारें आदि आज भी दिखाई दे रही हैं। भौगोलिक स्थिति के आंकलन मे 90 अंश के कोण पर मुड़ी आदि गंगा गोमती व इस मठ के इर्द गिर्द बड़े बड़े टीले शांत वातावरण साधना क्रम में ऊर्जा प्रदान करते ही हैं। वहीं, दूसरी तरफ पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थल महत्वपूर्ण है।
उऩ्होंने बताया कि अब इसे विकसित किया जा रहा है, आने वाले समय में सुल्तानपुर जनपद का यह शैव साधना केंद्र जनपद में ही नहीं पूरे देश में अपनी एक पहचान बनेगा। आज भी अनेक विदेशी शैव साधकों सहित देश के शैव साधक / अघोरी अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ के पीठाधीश्वर अवधूत कपाली बाबा को साधना की प्रतिमूर्ति मानकर आये दिन इस स्थान पर साधना रत देखे जाते हैं। पुरातात्विक एवं अध्यात्मिक महत्व का यह स्थान फिलहाल सरकारी सुविधाओं से वंचित है पर्यटन की असीम संभावना वाला यह क्षेत्र आज विकास की बाट जोह रहा है।