डॉ. चतुर्वेदी ने बताया कि पुलिस लाइन्स/थानों पर पाली जाने वाली मधुमक्खियां ‘एपिस मेलिफेरा’ (APIS MELLIFERA) नामक प्रजाति की हैं, जो पहली बार भारत में 1994 में कांगड़ा, हिमांचल प्रदेश में यूरोप से लायी गयी थीं, उसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी में इसके प्रजनन का शोध हुआ और धीरे-धीरे पूरे उत्तर भारत के मधुमक्खी पालकों ने इन्हें रखना शुरू किया। यह भी रोचक तथ्य है कि यह मधुमक्खियां अपने 45 दिन के अल्प जीवनकाल में तीन प्रमुख कार्य करती हैं। पहला, पांच दिन की मधुमक्खी नर्स-मधुमक्खी के रूप में डिब्बों में उपस्थित लार्वा को फीड कराती है। दूसरा, अगले 10 दिन तक मधुमक्खी डिब्बों के आस-पास चौकीदारी का काम करती है। तीसरा, 15 दिन की मधुमक्खी फ्रोजेन (FROZEN) के रूप में अपने डिब्बों से लगभग 05 किलोमीटर की परिधि से भोजन, नेक्टर तथा पोलन लाने का काम करती है। मधुमक्खी के पेट में दो भाग होते हैं, एक में वह स्वयं जीवित रहने के लिए खाना रखती है और दूसरे हनी स्टमक में नेक्टर रखती है, जिसे फ्रक्टोज, शुक्रोज और ग्लूकोज में विभाजित कर शहद तैयार करती है और अपने डिब्बे के ऊपरी भाग में शहद जमा करती है।
मधुमक्खीवाला ने दी सलाह
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि बाराबंकी में ‘मधुमक्खीवाला’ नाम से विख्यात युवा उद्यमी निमित्त सिंह के साथ विमर्श करके उन्होंने सुलतानपुर में ‘मधु-मिशन’ की योजना बनाई है। निमित्त सिंह ने सुलतानपुर पुलिस के मधु मिशन को महात्वाकांक्षी योजना बताते हुए कहा कि इससे थाना/चौकी आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बनेंगी। बताया कि वह पिछले 06 वर्षो से मधुमक्खी पालन से जुड़े रहे हैं और इससे होने वाले लाभों से परिचित हैं।
By- राम सुमिरन मिश्र