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इस दिवाली दिखेगा ग्रहों का अद्भुत खेल, जानें- लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

locationसुल्तानपुरPublished: Nov 12, 2020 01:06:03 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– 499 वर्षों बाद इस दिवाली बन रहा एक दुर्लभ संयोग, इससे पहले वर्ष 1921 में ग्रहों का हुआ था ऐसा संयोग- दीपावली 2020 आपके लिए कई शुभ संकेत लेकर आई है, मां लक्ष्मी की विधिवित पूजा बना सकती है आपके बिगड़े काम

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आचार्य डॉ. शिव बहादुर तिवारी ने बताया कि दीपावली पर विधिवत पूजा विशेष फल देने वाली है

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

सुलतानपुर. 14 नवम्बर को दीपावली का है। तंत्र पूजा के लिए दिवाली पर्व को विशेष माना जाता है। 499 वर्षों बाद इस दिवाली पर दुर्लभ संयोग बन रहा है। आचार्य डॉ. शिव बहादुर तिवारी की मानें तो वर्ष 1521 के बाद से यानी 499 सालों बाद ग्रहों का दुलर्भ योग बन रहा है। उन्होंने बताया कि 14 नवंबर को गुरु ग्रह अपनी राशि धनु में और शनि अपनी राशि मकर में रहेंगे और शुक्र ग्रह कन्या राशि में रहेगा। इन तीनों ग्रहों का यह दुर्लभ योग वर्ष 2020 से पहले वर्ष 1521 में 9 नवंबर को देखने को मिला था। उस वर्ष इसी दिन दीपोत्सव मनाई गई थी। आचार्य ने बताया कि गुरु और शनि को आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाला ग्रह माना गया है। ऐसे में यह दीपावली आपके लिए कई शुभ संकेत लेकर आई है।
आचार्य कहते हैं कि लक्ष्मी पूजा संध्याकाल या रात्रि में दिवाली में की जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ श्री यंत्र की पूजा भी की जाती है। 2020 की दीपावली गुरु धनु राशि में रहेगी। ऐसे में श्री यंत्र की पूजा रात को कच्चे दूध से करना लाभदायक हो सकता है। इधर, शनि अपनी मकर राशि में विराजमान रहेगी। इस दिन अमावस्या का योग भी है। ऐसे में तंत्र-मंत्र की पूजा करना लाभदायक होगा।
दीपावली का शुभ मुहूर्त
14 नवंबर को चतुर्दशी तिथि पड़ रही है जो दोपहर 1:16 तक रहेगी। इसके बाद अमावस तिथि का आरंभ हो जाएगा जो 15 नवम्बर की सुबह 10 बजे तक रहेगी। 15 तारीख को केवल स्नान दान की अमावस्या ही रह जाएगी।
दिवाली पर पूजा विधि
आचार्य डॉ. शिव बहादुर तिवारी ने बताया कि दीपावली पर विधिवत पूजा विशेष फल देने वाली है। सबसे पहले ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।। मंत्र का उच्चारण करते हुए जल अपने आसन और अपने आप पर भी छिड़के। कलश पर एक नारियल रखें। नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। यह कलश वरुण का प्रतीक है। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें, फिर लक्ष्मी जी की अराधना करें।
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