दुर्गा महोत्सव के चलते पूरा शहर मन्दिर के रूप में नजर आ रहा है। शहर के ठठेरी बाजार मोहल्ले में पहली बार भिखारी लाल सोनी ने सन् 1959 में जिले में दुर्गापूजा की शुरुआत की थी। उन्होंने 1959 के शारदीय नवरात्रि की सप्तमी को अम्बे माता की प्रतिमा स्थापित की थी और पूर्णिमा के दिन देवी प्रतिमा का गोमती नदी में विसर्जित किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है, जो अब दुर्गापूजा महोत्सव में बदल चुकी है। गांव-गांव और कस्बों में भी इसी अनूठी परम्परा के अंतर्गत करीब 16 सौ प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं। देश के नामी-गिरामी मंदिरों में मॉडल के रूप में पूजा पाण्डाल सजाए जाने लगे हैं। कोई भी भक्त दुर्गापूजा महोत्सव में निकलता है तो उसे भोजन और नाश्ते की परवाह नहीं करनी होती। हर दस कदम पर चाय, नाश्ता, जलपान और प्रसाद की भरपूर व्यवस्था रहती है।
मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं व्यवस्था
सुलतानपर जिले के दुर्गा महोत्सव की सबसे खास और उल्लेखनीय बात यह है कि इस इतने बड़े महोत्सव और आयोजन में मुस्लिम समुदाय के लोग भी दिल खोलकर हिस्सा लेते हैं। गैस एजेंसी संचालक जियाउल हसनैन, हाजी फतेह बहादुर भंडारों में गैस सिलेंडर का अपनी तरफ से मुफ्त इंतजाम करते हैं। वहीं, प्रसिद्ध समाजसेवी एवं व्यापारी अलीमुद्दीन बचनू, मोहम्मद इलियास, लड्डन बाबा, बिबिया मस्जिद के इमाम मौलाना कसीम सहित तमाम मुस्लिम समुदाय के लोग पूजा समितियों के सक्रिय सदस्य के रूप में महोत्सव को सौहार्द पूर्ण तरीके से सम्पन्न कराते हैं।