हर साल दवाओं के लिए आती है 10 हजार की रकम- ग्राम स्वच्छता समिति के खाते में प्रतिवर्ष सरकार की तरफ से 10 हजार रुपए भी जाते हैं। इस धनराशि से स्वच्छता संबंधित कार्य कराए जाते हैं। देखा गया है कि प्रधानों द्वारा धनराशि को तो खाते से निकाल लिया जाता है, मगर दवा का छिड़काव नहीं करवाते हैं, जिसके चलते डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों पर काबू पाने में दिक्कत हो रही है। पिछले साल डेंगू के लगभग डेढ़ सौ मरीज चिन्हित किए गए थे, इसके बाद भी न ही गांव में फागिंग हुई और ना ही साफ-सफाई की तरफ किसी का ध्यान गया। मच्छरजनित बीमारियों पर काबू पाने के लिए शासन ने इस बार ग्राम प्रधानों पर शिकंजा कस दिया है। ग्राम स्वच्छता समिति के खातों में ₹10 हजार रुपए भेजने के साथ-साथ ग्राम प्रधानों को फॉगिंग मशीन और दवा खरीदने के लिए निर्देश दिया गया है।
मजदूरों से कराना है दवाओं का छिड़काव- ग्राम प्रधानों को एक मजदूर करके दवा का छिड़काव करवाने के लिए भी कहा गया है। जिला मलेरिया अधिकारी को आदेश किया गया है कि वह ग्राम प्रधानों को फागिंग मशीन के साथ-साथ दवा खरीद कराकर तत्काल छिड़काव करवाएं। डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी बीमारियां सामने आने पर संबंधित गांव के प्रधान के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। यदि इसके बाद भी मरीज मिलते हैं तो उसके इलाज का खर्च ग्राम प्रधान को उठाना होगा।
सीडीओ राधेश्याम ने कहा कि शासन के आदेशानुसार जिले भर के ग्राम प्रधानों को गांवों में फागिंग मशीन से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराने का निर्देश दिए गए हैं। जिस गांव में मलेरिया बुखार, डेंगू के मरीज पाए जाएंगे, वहां के प्रधानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
मरीजों से भरी पड़ी है जिला अस्पताल की न्यू इमरजेंसी- गांवों में फॉगिंग मशीन खरीद कर कीटनाशक दवाओं के छिड़काव कराने का आदेश सिर्फ फाइलों में चल रहा है क्योंकि निजी अस्पतालों के अलावा जिला अस्पताल की न्यू इमरजेंसी वार्ड मलेरिया, बुखार और वायरल फीवर के मरीजों से भरी है। अभी तक जिले के किसी भी ग्राम प्रधान ने फॉगिंग मशीनों की खरीद नहीं की है।