विद्यालंकार लिखित पुस्तक ‘भारतवर्ष को सर्वांग स्वतंत्रता तथा मनमोहन आर्य की किताब’ और ‘मेरे सात जन्म’ में आर्य समाजियों के इस सत्याग्रह का ज़िक्र किया गया है। वर्ष 1938 में हैदराबाद के निजाम अंग्रेजों के समर्थक थे। अंग्रेजों के निर्देश पर उन्होंने यह फरमान जारी कर दिया कि पूरे राज्य में अब मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं होगा, जो भी आदेश की अवज्ञा करेगा उसे जेल में डाल दिया जाएगा। धार्मिक भेदभाव वाले इस कानून के खिलाफ आर्य समाज ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। जिसने भी इस कानून का विरोध किया, उसे जेल भेज दिया गया। उस समय अमेठी नरेश राजा रणंजय सिंह प्रदेश में बड़े आर्य समाजी हुआ करते थे। उन्होंने अमेठी रियासत और सुल्तानपुर से 21 युवाओं को इस आर्य सत्याग्रह के लिए तैयार किया।
दो-दो साल के लिये हुए जेल
1939 में सुल्तानपुर से बलिदानी जत्था हैदराबाद के लिए रवाना हुआ। इसमें बाबू संगमलाल, सुंदर लाल, पलहीपुर के केदारनाथ आर्य, करथुनी के चन्दरमित्र उपाध्याय और कादीपुर के केदार हलवाई शामिल थे। यह जत्था ट्रेन से रोटेगांव स्टेशन पर जैसे ही उतरा, निजाम की पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के दूसरे दिन ये लोग बीजापुर कोर्ट में पेश किए गए। माफीनामा देने का दबाव बनाया जाने लगा। नहीं माने तो वहां के काजी ने सारे सत्याग्रहियों को दो-दो साल की सजा देकर जेल भेज दिया। सत्याग्रहियों को सजा दिये जाने का विरोध इतना व्यापक हो गया कि कांग्रेस सहित कई सामाजिक संगठनों ने आंदोलन में कूद पड़े। यह आंदोलन इतना तेज था कि निजाम को बैकफुट पर आना पड़ा। 8 अगस्त 1939 को सारे बन्दी सत्याग्रही रिहा कर दिये गए। इस आर्य सत्याग्रह को आजादी के बाद सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा माना और सारे सत्याग्रही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माने गये।
1939 में सुल्तानपुर से बलिदानी जत्था हैदराबाद के लिए रवाना हुआ। इसमें बाबू संगमलाल, सुंदर लाल, पलहीपुर के केदारनाथ आर्य, करथुनी के चन्दरमित्र उपाध्याय और कादीपुर के केदार हलवाई शामिल थे। यह जत्था ट्रेन से रोटेगांव स्टेशन पर जैसे ही उतरा, निजाम की पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के दूसरे दिन ये लोग बीजापुर कोर्ट में पेश किए गए। माफीनामा देने का दबाव बनाया जाने लगा। नहीं माने तो वहां के काजी ने सारे सत्याग्रहियों को दो-दो साल की सजा देकर जेल भेज दिया। सत्याग्रहियों को सजा दिये जाने का विरोध इतना व्यापक हो गया कि कांग्रेस सहित कई सामाजिक संगठनों ने आंदोलन में कूद पड़े। यह आंदोलन इतना तेज था कि निजाम को बैकफुट पर आना पड़ा। 8 अगस्त 1939 को सारे बन्दी सत्याग्रही रिहा कर दिये गए। इस आर्य सत्याग्रह को आजादी के बाद सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा माना और सारे सत्याग्रही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माने गये।