योजना के मुताबिक, कड़कनाथ मुर्गा प्रजाति का अंडा गैर जनपद या फिर गैर प्रांत से लाया जाएगा। उसे हैचरी में रखकर चूजा तैयार किया जाएगा। 21 दिन में चूजा तैयार होने के बाद उसे स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सस्ती दरों पर दिया जाएगा। महिलाएं चूजे को विकसित करके मुर्गी से अंडा तैयार करेगी व मुर्गें को बाजार में बेच करके मुनाफा कमाएंगी।
कड़कनाथ मुर्गा प्रजाति का अंडा बाहर से 20 से 25 रुपये में लाया जाएगा। अंडे को मशीन से चूजा के रूप मे विकसित करके उसे स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को करीब 50 रुपये में दिया जाएगा। महिलाएं चूजे को विकसित करके मुर्गी से अंडा तैयार कर सकेंगी और मुर्गा को बाजार में बेच सकेंगी। अधिकारियों के मुताबिक, बाजार में कड़कनाथ मुर्गा की कीमत करीब छह से सात सौ रुपये है। कम समय में अधिक फायदा मिलने से समूह की महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकेंगी। कड़कनाथ मुर्गा फैट फ्री होता है। यह अन्य प्रजातियों से ज्यादा फायदेमंद है। इस प्रजाति को विकसित करने से महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकेंगी। इसे देखते हुए जिले में दो हैचरी यूनिट की स्थापना का निर्णय लिया गया है।
कड़कनाथ मुर्गे और मुर्गी का रंग काला, मांस काला और खून भी काला होता है। अपने औषधीय गुण के कारण यह बहुत डिमांड में है। इस मुर्गे के मांस में आयरन और प्रोटीन सबसे ज्यादा पाया जाता है। इसके मांस में वसा और कोलेस्ट्रॉल भी कम पाया जाता है। इसके चलते ह्रदय और मधुमेह के रोगियों के लिए यह चिकन बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसके रेगुलर सेवन से शरीर को काफी पोषक तत्व मिलते हैं। इसकी मांग और फायदों को देखते हुए सरकार भी इसका बिजनेस शुरू करने में हर स्तर पर मदद करती हैं।