2014 का इतिहास 2014 के चुनाव में भी सुलतानपुर में भाजपा का बोलबाला रहा। इस सीट पर वरुण गांधी ने 4 लाख 10 हजार 348 वोट पाकर सुल्तानपुर में कमल खिलाया था। दूसरी ओर बसपा के कैंडिडेट पवन पांडेय 2 लाख 31 हजार 446 वोटों की सहायता से दूसरे नंबर पर रहे। वहीं सपा के उम्मीदवार शकील अहमद को 2 लाख 28 हजार 144 वोट प्राप्त हुए और कांग्रेस की महिला उम्मीदवार अमिता सिंह को 41 हजार 983 वोट मिले।
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का राजनीतिक सफरनामा केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी इस बार सुलतानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। 26 अगस्त, 1956 में जन्मी मेनका गांधी की पहचान राजनीति के साथ ही पशु अधिकारवादी और पर्यावरणविद के रूप में भी है। इस कार्यकाल में केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री होने के साथ ही वह वर्ष 2001 में राज्य मंत्री संस्कृति और राज्य मंत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन एवं सांख्यिकी रह चुकी हैं।
वर्ष 1980 में पति संजय गांधी (35) की असामयिक मृत्यु के बाद पहली बार मेनका गांधी ने 1984 में अमेठी से सजंय विचार मंच (बतौर निर्दलीय) उम्मीदवार, कलेक्ट्रेट में आकर नामांकन पत्र भरकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। उसके बाद मेनका संजय गांधी पीलीभीत से लगातार 7 बार संसद सदस्य रहीं। वर्ष 1984 में मेनका गांधी ने अपने जेठ पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोंकी थी। अब 35 साल बाद मेनका बेटे वरुण की जगह सुलतानपुर से चुनाव लड़ेंगी। वे अपने पति के शिष्य और उनके मित्र रहे डॉ. सजंय सिंह के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोक रही हैं।
1980 में पति संजय गांधी की मृत्यु के बाद रिक्त हुई अमेठी सीट से हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी नए सांसद चुने गए थे। कुछ समय बाद पारिवारिक कारणों से मेनका गांधी गांधी परिवार से अलग हो गईं और वर्ष 1981-1982 में उन्होंने सजंय विचार मंच का दिल्ली में गठन किया।
अपने जेठ के खिलाफ लड़ीं थीं मेनका गांधी पति सजंय गांधी के असामयिक निधन से टूट चुकीं व गांधी परिवार छोड़ नई जिंदगी शुरू करने वालीं मेनका के सामने खुद को स्थापित करने की बड़ी चुनौती थी। मेनका अपने पति सजंय गांधी की कर्मभूमि को ही अपनी कर्मभूमि और आशियाना बनाना चाहती थीं। जानकार बताते हैं कि वह समय मेनका गांधी के लिए बेहद कठिन और चुनौतियों से भरा था। एक ओर उनपर बेटे वरुण की जिम्मेदारी थी, तो दूसरी ओर खुद को स्थापित करने की चुनौती।। मेनका गांधी 1982 से 1984 के बीच सुलतानपुर और अमेठी में काफी सक्रिय रहीं। मेनका गांधी 1982 से लेकर 1984 तक अमेठी में बेहद सक्रिय रहीं। सजंय गांधी की पत्नी और इंदिरा गाँधी की बहू होने के कारण लोगों ने उन्हें बहुत सम्मान दिया। लेकिन समय ने पलटी मारी और 31 अक्टूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ ही दिनों बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति का लाभ राजीव गांधी को मिला। पूरा विपक्ष मेनका गांधी के समर्थन में था, बावजूद इसके मेनका गांधी चुनाव हार गईं थीं।
1989 में मेनका पीलीभीत लोकसभा सीट से अपना भाग्य आजमाने पहुंचीं। तब उन्होंने जनता दल से इस सीट से चुनाव लड़ा था और 2,69,044 वोटों से विजयी हुई थीं। 1991 में जनता दल से इसी सीट से चुनाव लड़ा था पर इस बार उन्हें 1,39,710 वोट मिले थे। उन्हें मात दी थी बीजेपी के परशुराम गंगवार ने। लेकिन मेनका ने हार नहीं मानी और 1996 में वह फिर से जनता दल के टिकट पर इस सीट से विजयी घोषित हुईं। उन्हें 3,95,827 वोट मिले थे। 2004 में मेनका यहां से भाजपा प्रत्याशी बनीं और 2,55,615 वोटों से जीत हासिल की। 2009 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर मेनके के बेटे वरुण ने यहां से चुनाव लड़ा और उन्होंने 4,19,539 मतों से जीत दर्ज की। 2014 के चुनाव में मेनका पीलीभीत से भाजपा प्रत्याशी बनाई गईं।
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