यह उस समय की बात है जब जौनपुर जिले के जनसंघ पार्टी के सांसद ब्रह्मजीत सिंह की मौत हो गई थी। उपचुनाव होना तय था। जनसंघ नेतृत्व को सीट बचाने की चुनौती के साथ-साथ यह चिंता सता थी कि पार्टी किसको प्रत्याशी बनाये, जिससे सीट पार्टी के कब्जे में ही रहे। पार्टी नेतृत्व किसी भी कीमत पर उपचुनाव जीतना चाहता था। ऐसे में पार्टी के अंदर यह तय नहीं हो पा रहा था कि प्रत्याशी किसको बनाया जाये।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वर्ष 1953 में जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद जनसंघ को आगे ले जाने की सारी जिम्मेदारी पं. दीनदयाल उपाध्याय के कंधों पर थी। इसीलिये उन्होंने जौनपुर लोकसभा उपचुनाव लड़ने की हामी भर दी।
कांग्रेस ने राजदेव सिंह को उतारा था मैदान में
उपचुनाव में जनसंघ प्रत्याशी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मुकाबले कांग्रेस ने राजदेव सिंह को मैदान में उतारा था। कांग्रेस भी हर हाल में उपचुनाव जीतना चाहती थी। चुनाव बड़ा रोचक था। जानकार बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपनी हार स्वीकार कर लिए थे। चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गया। कांग्रेस प्रत्याशी राजदेव सिंह ने विजय हासिल की। उसके बाद हुए 1967 और 1971 के चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार राजदेव सिंह ने विजय पताका फहराया था।
उपचुनाव में जनसंघ प्रत्याशी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मुकाबले कांग्रेस ने राजदेव सिंह को मैदान में उतारा था। कांग्रेस भी हर हाल में उपचुनाव जीतना चाहती थी। चुनाव बड़ा रोचक था। जानकार बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपनी हार स्वीकार कर लिए थे। चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गया। कांग्रेस प्रत्याशी राजदेव सिंह ने विजय हासिल की। उसके बाद हुए 1967 और 1971 के चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार राजदेव सिंह ने विजय पताका फहराया था।
कुशल प्रशासक और संगठनकर्ता थे पं दीनदयाल उपाध्याय
बताया जाता है कि वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के पश्चात जनसंघ की कमान पंडित दीनदयाल उपाध्याय के हाथों गई। वे कुशल संगठनकर्ता और लोकसंग्रह करने के कौशल के धनी थे। सादा जीवन और उच्च विचार के हिमायती पं. दीनदयाल उपाध्याय सौम्यता, साधारण जीवन और कार्यकर्ताओं से जुड़ जाने का कौशल उन्हें आरएसएस से मिला था। जनसंघ की जिम्मेदारी मिलने के बाद बिना शोर किए पंडित दीन दयाल ने संगठन कार्य को जमीनी स्तर पर इस तरह से मजबूत किया। वर्ष 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ कांग्रेस पार्टी के समक्ष प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी और वह दूसरे पायदान तक पहुंच गई।
बताया जाता है कि वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के पश्चात जनसंघ की कमान पंडित दीनदयाल उपाध्याय के हाथों गई। वे कुशल संगठनकर्ता और लोकसंग्रह करने के कौशल के धनी थे। सादा जीवन और उच्च विचार के हिमायती पं. दीनदयाल उपाध्याय सौम्यता, साधारण जीवन और कार्यकर्ताओं से जुड़ जाने का कौशल उन्हें आरएसएस से मिला था। जनसंघ की जिम्मेदारी मिलने के बाद बिना शोर किए पंडित दीन दयाल ने संगठन कार्य को जमीनी स्तर पर इस तरह से मजबूत किया। वर्ष 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ कांग्रेस पार्टी के समक्ष प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी और वह दूसरे पायदान तक पहुंच गई।