आचार्य शिवबहादुर तिवारी ने बताया कि ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार मां तुलसी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय गंगा के पवित्र तट पर श्रीगणेश तपस्या कर रहे थे। भगवान श्रीगणेश को तपस्या करते देख माता तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। माता तुलसी ने भगवान श्रीगणेश के पास जाकर निवेदन किया कि आप मेरे स्वामी हो जाइए। लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी माता के प्रणय निवेदन को अस्वीकार करते हुए विवाह करने से इंकार कर दिया। विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद क्रोधित माता तुलसी ने भगवान श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और तुलसी माता के श्राप से व्यथित भगवान श्रीगणेश ने तुलसी माता को जड़ वृक्ष बनने का श्राप दे दिया।
भगवान श्रीगणेश का जन्म :- शिवमहापुराण के अनुसार माता पार्वती को भगवान श्रीगणेश की रचना करने का विचार उनकी सखियां जया और विजया के कहने पर आया था। जया-विजया ने एक दिन माता पार्वती से कहा था कि नंदी आदि सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं। अत: आपको भी एक गण की रचना करनी चाहिए जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करे। इस सुंदर सुझाव पर माता पार्वती के मन में भी सुंदर विचार ने जन्म लिया और उन्होंने भगवान श्रीगणेश की रचना अपने शरीर के मैल से कर दी।
श्रीगणेश के शरीर का रंग लाल और हरा :- आचार्य डॉ शिव बहादुर तिवारी ने कहा भगवान श्री गणेश की गजानन शरीर के बारे में बताया कि शिवमहापुराण के अनुसार श्रीगणेश के शरीर का रंग लाल और हरा है। श्रीगणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है वह जडऱहित, बारह अंगुल लंबी और तीन गांठों वाली होना चाहिए। ऐसी 101 या 121 दूर्वा से श्रीगणेश की पूजा करना चाहिए। श्रीगणेश का विवाह प्रजापति विश्वरूप की पुत्रियों सिद्धि और सिद्धि से हुआ है। श्रीगणेश के दो पुत्र हैं इनके नाम क्षेम तथा लाभ हैं ।
भगवान श्रीगणेश ने लिखा था महाभारत ग्रन्थ :- आचार्य ने बताया कि महाभारत ग्रंथ की रचना तो स्वयं महर्षि वेदव्यास ने की थी, लेकिन महाभारत ग्रन्थ का लेखन महर्षि वेदव्यास जी के अनुरोध पर भगवान श्रीगणेश ने किया था । भगवान श्रीगणेश ने महाभारत ग्रन्थ का लेखन इस शर्त पर किया था कि महर्षि वेदव्यास बिना एक भी क्षण सोचे-विचारे और बिना रुके ही लगातार इस ग्रंथ के श्लोक बोलते रहें। भगवान गणेश की इस शर्त के बाद महर्षि वेदव्यास ने भी भगवान गणेश के सामने एक शर्त रखी कि मैं भले ही बिना सोचे-समझे बोलूं लेकिन आप किसी भी श्लोक को बिना समझे लिखे नहीं । बीच-बीच में महर्षि वेदव्यास ने कुछ ऐसे श्लोक बोले जिन्हें समझने में श्रीगणेश को थोड़ा समय लगा और इस दौरान महर्षि वेदव्यास अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।