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लेके पहला-पहला प्यार, भरके आंखों मैं खुमार प्रसिद्ध गीत किसने लिखा, उसी शायर का जन्मदिन है आज

locationसुल्तानपुरPublished: Oct 01, 2020 10:49:05 am

Submitted by:

Mahendra Pratap

मशहूर शायर, प्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का आज जन्मदिन (1 अक्टूबर 1919) है।

लेके पहला-पहला प्यार, भरके आंखों मैं खुमार प्रसिद्ध गीत किसने लिखा, उसी शायर का जन्मदिन है आज

लेके पहला-पहला प्यार, भरके आंखों मैं खुमार प्रसिद्ध गीत किसने लिखा, उसी शायर का जन्मदिन है आज

सुल्तानपुर. मशहूर शायर, प्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का आज जन्मदिन (1 अक्टूबर 1919) है। अपने लिखे गीतों से लोगों के दिलों में छा जाने वाले मजरूह सुल्तानपुरी उर्दू साहित्य के प्रमुख शायरों में गिने जाते हैं। उनकी कलम से लिखे गीत व शायरी लोग दिमाग में आज भी घर कर जाती हैं। देखिए उनका लिखा, मैं अकेला चला था जानिब-ए-मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया…।
सुल्तानपुर की आन बान शान रहे मशहूर शायर मजरूह सुल्तानपुरी ने बॉलीवुड में करीब 50 साल तक अपना योगदान दिया था। मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को हुआ था। जिले के कुड़वार थानाक्षेत्र के गंजेहड़ी गांव के रहने वाले थे। मजरूह साहेब ने अपनी रचनाओं से देश साहित्य और समाज को एक दिशा देने का प्रयास किया था।
मजरूह सुल्तानपुरी का असली नाम था “असरार उल हसन खान” मगर दुनिया इन्हें मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जानती हैं। मजरूह साहब के पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे। और उनकी इच्छा थी की अपने बेटे मजरूह सुल्तानपुरी को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाये। मजरूह सुल्तानपुरी ने अपनी शिक्षा तकमील उल तीब कॉलेज से ली और यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उर्तीण की। और इस परीक्षा के बाद एक हकीम के रूप में काम करने लगे, लेकिन उनका मन तो बचपन से ही कही और लगा था। मजरूह सुल्तानपुरी को शेरो-शायरी से काफी लगाव था। और अक्सर वो मुशायरों में जाया करते थे। जिससे उन्हें काफी नाम और शोहरत मिलने लगी। अब वे अपना सारा ध्यान शेरो-शायरी और मुशायरों में लगाने लगे और इसी कारण उन्होंने मेडिकल की प्रेक्टिस बीच में ही छोड़ दी।
सब्बो सिद्धकी इंस्टीट्यूट के संचालित एक संस्था ने 1945 में एक मुशायरा का कार्यक्रम मुम्बई में रखा और इस कार्यक्रम का हिस्सा मजरूह सुल्तानपुरी भी बने। जब उन्होंने अपने शेर मुशायरे में पढ़े तब कार्यक्रम में बैठे मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उनकी शायरी सुनकर काफी प्रभावित हुए। और मजरूह साहब से मिले और एक प्रस्ताव रखा की आप हमारी फिल्मों के लिए गीत लिखे। मगर मजरूह सुल्तानपुरी ने साफ़ मना कर दिया वो फिल्मों में गीत लिखना अच्छी बात नहीं मानते थे।
पर जिगर मुरादाबादी ने समझाया और सलाह दी कि फिल्मों में गीत लिखना कोई बुरी बात नहीं हैं। इससे मिलने वाली धनराशि को अपने परिवार को भेज सकते हैं खर्च के लिए। फिल्में बुरी नहीं होती इसमे गीत लिखना कोई गलत बात नहीं हैं। जिगर मुरादाबादी की बात को मान कर वो फिल्मों में गीत लिखने के लिए तैयार हो गए। इस बीच उनकी मुलाकात जानेमाने संगीतकार नौशाद से हुई और नौशाद जी ने उन्हें एक धुन सुनाई और उस धुन पर गीत लिखने को कहा।
मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने लिखे गाने के बोल नौशाद साहेब को सुनाए, “गेसू बिखराए, बादल आए झूम के” इस गीत के बोल सुनकर नौशाद काफी प्रभावित हुए। और अपनी आने वाली नयी फिल्म “शाहजहां” के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव रखा और यहीं से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र का दौर और बन गयी एक मशहूर जोड़ी मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार नौशाद की। दोनों की जोड़ी ने दुनिया को एक से बढ़कर एक कालजयी गीत का तोहफा दिये।
पांच गीत :—

(1)
छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा
छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा
इन अदाओं का ज़माना भी है दीवाना
दीवाना क्या कहेगा
(2)
छलकाएं जाम आइए आपकी आंखों के नाम
होंठों के नाम
फूल जैसे तन के जलवे, ये रँग-ओ-बू के
ये रंग-ओ-बू के
आज जाम-ए-मय उठे, इन होंठों को छूके
इन होंठों को छूके
लचकाइए शाख-ए-बदन, लहराइये ज़ुल्फों की शाम
छलकाएं जाम…
(3)
चांदनी रात बड़ी देर के बाद आई है
ये मुलाक़ात बड़ी देर के बाद आई है
आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के बाद
आज की रात बड़ी देर के बाद आई है
(4)
लेके पहला पहला प्यार
भरके आंखों मैं खुमार
जादू नगरी से आया है कोई जादूगर
लेके पहला पहला प्यार …
(5)
रूठके हमसे कहीं जब चले जाओगे तुम
ये ना सोचा था कभी इतने याद आओगे तुम
मैं तो ना चला था दो कदम भी तुम बिन
फिर भी मेरा बचपन यही समझा हर दिन
(छोड़कर मुझे भला अब कहां जाओगे तुम)-2
ये ना सोचा था …

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