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सुल्तानपुर

ट्रॉमा सेंटर में एक डॉक्टर, दो नर्स की ड्यूटी, पर वह भी रहते हैं गायब

नाम ट्रामा सेंटर। इलाज बुखार का भी नहीं। यह आलम है जिले के अमहट में स्थित ट्रॉमा सेंटर का है। यहां न तो चिकित्सक हैं और न ही कोई स्टाफ।

सुल्तानपुरSep 26, 2017 / 10:45 pm

shatrughan gupta

Sultapur Trauma Center

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सुल्तानपुर. नाम ट्रामा सेंटर। इलाज बुखार का भी नहीं। यह आलम है जिले के अमहट में स्थित ट्रॉमा सेंटर का है। यहां न तो चिकित्सक हैं और न ही कोई स्टाफ। दो वर्ष पहले इलाज के लिए शुरू किया गया यह ट्रामा सेंटर झाड़-झंखाड़ में तब्दील हो चुका है। जिला अस्पताल में तैनात एक चिकित्सक और दो नर्स की ड्यूटी जरूर लगती है, लेकिन वह भी हमेशा नदारद रहते हैं। इस कारण मरीज भी बगैर इलाज कराए वापस लौट जाते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराना का दावा महज दिखावा बनकर रह गया है।
समाजवादी सरकार में बनी थी ट्रॉमा की बिल्डिंग

अमहट ट्रॉमा सेंटर का प्रस्ताव तत्कालीन सपा सरकार द्वारा 2013-14 में बनाया गया। निर्माण का कार्य जनवरी 2014 में शुरू हुआ और यह बिल्डिंग जून 2015 में बनकर तैयार हो गई। इस बिल्डिंग को बनाने में 119.26 लाख रुपए की लागत आई। निर्माण एजेंसी उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद ने इस कार्य को पूरा किया। ट्रॉमा सेंटर का शुभारंभ हुए दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन चिकित्सक व स्टाफ की व्यवस्था नहीं हो पाई। काम चलाने के लिए जिला अस्पताल के एक चिकित्सक व दो नर्स को ड्यूटी पर तैनात किया गया है, लेकिन ये सभी ट्रॉमा सेंटर का मुख्य द्वार बंद कर नदारद रहते हैं। देखरेख के अभाव में वहां पड़े दर्जनों बेड खराब हो चले हैं। अस्पताल में मौजूद स्टाफ नर्स ने बताया कि सोमवार को चिकित्सक के रूप में आर्थो सर्जन डॉ. पीके राय की ड्यूटी लगाई गई, लेकिन वह स्वास्थ्य कैंप का हवाला देकर चले गए। उसने बताया कि यहां कोई मरीज नहीं आता है। अगर आ भी गया तो उसे जिला अस्पताल भेज दिया जाता है।
स्वास्थ्य संसाधन नदारद, कैसे हो इलाज

बेहतर त्वरित इलाज के लिए चालू किया गया ट्रॉमा सेंटर स्वास्थ्य सेवाओं से पूरी तरह अछूता है। यहां केवल बिल्डिंग है। लैब, एक्स-रे मशीन, अल्ट्रा साउंड व सीटी स्कैन मशीनें नहीं हैं। आपरेशन थियेटर में केवल बेड पड़े हुए हैं। जनरेटर तक मुहैया नहीं कराया जा सका है। आकड़े बताते हैं कि दुर्घटना के करीब अस्सी फीसदी मरीजों को लखनऊ ट्रॉमा सेंटर रफर किया जाता है, जिसमें से 25-30 फीसदी घायल रास्ते में ही दम तोड़देते हैं।
चिकित्सकों व स्टाफ की सूची भेजी गई है: सीएमओ

इस संबंध में सीएमओ डॉ. सीबीएन त्रिपाठी ने बताया कि चिकित्सकों व स्टाफ की सूची शासन को भेजी गई है। कई बार जिलेेवासियों की समस्याओं से शासन को अवगत कराया गया है, लेकिन अभी तक कोई सुविधा नहीं मिल पाई है। शासन से निर्देश मिलने के बाद ट्रॉमा सेंटर की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर बनाई जाएंगी।
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