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जब खाड़ी देश में बन गए बंधुआ मजदूर, जब्त हो गया पासपोर्ट तब फरिश्ता बन कर आए अब्दुला !

locationसुल्तानपुरPublished: May 12, 2018 01:26:35 pm

Submitted by:

Dikshant Sharma

मालिक से बात की तो उसने पासपोर्ट देने के लिए दो लाख रुपए की डिमांड की।

dubai immigrants

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सुल्तानपुर. पिछले दो महीने से दुबई में फंसे कृष्ण कुमार और सूरज गुरुवार को अपने गांव लौट आए। उन्हें एक बार फिर अपनों से मिलवाने के पीछे एक मुस्लिम सोशल वर्कर की मेहनत छुपी है ।

दुबई में बन गए थे बन्धुआ मजबूर

कादीपुर कोतवाली के पहाड़पुर निवासी कृष्ण और सूरज नौकरी की तलाश में थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात एक स्थानीय एजेंट से हुई। उसने दुबई में नौकरी दिलाने के लिए 90-90 हजार रुपए लिए थे ।बताया जाता है कि दुबई भेजवाने के लिए उसने ही सारा इंतजाम किया। दोनों युवक 28 फरवरी को मुंबई एयरपोर्ट से दुबई गए थे। एजेंट ने दोनों को यह भरोसा दिया था कि वहां जाकर नौकरी मिलेगी, लेकिन जब दुबई पहुंचे तो असलियत सामने आ गई। वहां के लोग इन दोनों से कम पैसों में मजदूरी करवाने लगे थे।

लंबी शिफ्टों में मजदूरी होने के कारण ये दोनों काफी परेशान हो गए थे। पैसे भी बहुत कम मिल रहा था। इन दोनों ने जब मालिक से कहा कि उन्हें आगे काम नहीं करना तो इन दोनों का पासपोर्ट जब्त करवा कर रख लिए गए।
कृष्ण और सूरज के परिजनों को यह मालूम हुआ कि दोनों नौकरी नहीं कर रहे हैं ,बल्कि उन दोनों को मालिक ने बन्धुआ मजबूर बना लिया है । परिजनों ने मालिक से बात की तो उसने पासपोर्ट देने के लिए दो लाख रुपए की डिमांड की।
ऐसे में फरिश्ता बना अब्दुल हक

उन दोनों के परिजनों को जब यह मालूम हुआ कि दोनों बंधक बनाया गया है और उनसे बन्धुआ मजदूरी कराई जा रही है तो उनके पिता समाजसेवी अब्दुल हक से मिलकर सारी दास्तान सुनाई । उन्होंने पूरा केस जानने के बाद मदद के लिए हामी भर दी। अब्दुल हक ने दोनों की फाइल लेकर 22 मार्च को डीएम संगीता सिंह से मिले, फिर अपने खर्च पर दोनों के परिजनों को विदेश मंत्रालय से मदद मांगने दिल्ली लेकर गए। अब्दुल हक की दो महीने की मेहनत आखिर रंग लाई । दो दिन पहले ही दोनों दुबई से घर लौट पाए।
डेढ़ साल में कईयों को करवाया आजाद

– जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर कादीपुर तहसील की सीएचसी कैम्पस के क्वार्टर में सोशल वर्कर अब्दुल हक़ का परिवार रहता है। उनके पिता सीएचसी में ही पोस्टेड हैं।
– हक पिछले डेढ़ साल से विदेश में फंसे युवकों की मदद में जुटे हैं। अपनों को मिलवाने के इस नेक काम में वे प्रशासन से लेकर मंत्रालय तक होने वाला खर्च वे स्वयं ही करते हैं।
– अब्दुल लोगों को फंसाने वाले रैकेट के खिलाफ भी वर्क कर रहे हैं।
ऐसे बने सोशल वर्कर

– अब्दुल हक़ बताते हैं, “अगस्त 2016 की बात है। मैं एक पूर्व विधायक के घर पर था। वहां उनसे मिलने सराय कल्याण गांव के कुछ लोग अरब देशों में फंसे अपने बेटे को बचाने की गुहार लगाने पहुंचे थे। उनकी बातें सुनकर मुझे लगा प्रेजेंट टाइम में यह एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इस दिशा में कोई काम करना चाहिए। मदद मांगने आए परिवार का बेटा जनवरी 2015 में सऊदी अरब गया था, लेकिन वहां जाने के 6 महीने बाद ही उसका घर से कनेक्शन टूट गया। मैंने उनकी मदद करने के लिए एंबैसी लेटर लिखा तो पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है। उसके शव को परिजनों तक लाने में लगभग 6 महीने का समय लग गया। 22 दिसम्बर 2016 को सऊदी से उसका कंकाल घर आ सका। उस केस के बाद से ही मैं लोगों की मदद कर रहा हूं।”
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