हर किसी के पास बात करने के अपने तर्क हैं। लेकिन, न तो भाजपा और न ही कांग्रेस पार्टी के स्थानीय कार्यालय ने इस चर्चा में दिलचस्पी दिखायी है कि कोई इस तरह का बड़ा राजनीतिक परिवर्तन होने जा रहा है। लेकिन, कहने वाले बड़े दावे के साथ कह रहे हैं कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल प्रियंका गांधी से मिला था। इन लोगों ने प्रियंका को सुल्तानपुर से मैदान में उतरने का अनुरोध किया था। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि तब प्रियंका गांधी ने न तो हामी भरी न ही नकारा। उन्होंने फैसला राहुल गांधी और मां सोनिया पर छोड़ दिया था। कुछ उत्साही कांग्रेसी तो यह भी कह रहे हैं कि प्रियंका गांधी चुनाव लडऩे को तैयार हो गयी हैं। इसीलिए प्रियंका के चचेरे भाई और भाजपा नेता वरुण गांधी की सीट बदलने को लेकर खबरें आयीं।
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आपस में नहीं लडऩा चाहते भाई-बहनसुलतानपुर के लोगों का कहना है कि वे प्रियंका गांधी को अच्छी तरह से जानते हैं। उनसे ज्यादा वरुण को समझते हैं। अब तक वरुण ने गांधी परिवार के बारे में कभी एक शब्द भी नहीं बोला है। ऐसे में भाई-बहन के बीच लड़ाई का सवाल ही नहीं होता। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि वरुण गांधी और प्रियंका गांधी के बीच बातचीत भी हो चुकी है। दोनों के बीच संबंध खराब न हों इसलिए वरुण गांधी ने खुद सीट छोडऩे की पेशकश की है। वैसे भी प्रियंका ने हमेशा वरुण को अपना छोटा भाई माना है और वरुण ने प्रियंका को बड़ी बहन जैसा आदर और सम्मान दिया है।
वरुण गांधी की भाजपा नेतृत्व से अनबन और उनकी पार्टी से नाराजगी की खबरें जब-तब आती रही हैं। भाजपा छोडऩे की खबरें भी कई बार आयीं। तब वरुण गांधी की तरफ से इसका पुरजोर विरोध किया गया। लेकिन यह सच है कि अमित शाह के नेतृत्व में पिछले चार साल से वरुण गांधी पार्टी में हासिये पर हैं। वरुण गांधी ने अपने को विश्वविद्यालयों और सेमिनारों में सीमित कर लिया है। वे अखबारों में लेख के जरिए अपना नजरिया रखते रहते हैं।
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प्रियंका राहुल गांधी पर भारी नहीं पडऩा चाहतींसुलतानपुर की फिजां में एक और बात भी तैर रही है। एक बड़ा वर्ग है जो यह मानने को तैयार नहीं कि प्रियंका गांधी अभी चुनाव लड़ेगीें। कांग्रेस में भले ही मौसम बदल रहा है। लेकिन इतना तय है कि प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल गांधी पर बिल्कुल भारी नहीं पडऩा चाहतीं। सक्रिय राजनीति में आकर वह अपने भाई से मौक़ा नहीं चुराना चाहती हैं। यहां के लोगों का कहना है कि राजनीति ख़ालीपन को बर्दाश्त नहीं करती है और न ही यह सत्ता के दो केंद्रों को ही पसंद करती है। चुनाव जीतकर प्रियंका राहुल गांधी के गैप को भरना कतई पसंद नहीं करेंगी। सांसद बनकर वह पार्टी में सत्ता के समानांतर दो केंद्र भी बनने का मौका नहीं देगीं। इसलिए कुछ को यह खबर कोरी बकवास से ज्यादा कुछ नहीं लगती।