कतारगाम जोन में अमरोली आवास निवासी पायल दिनेश देवीपुजक ने स्थानीय निजी अस्पताल में नवजात बच्ची को जन्म दिया था। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद पायल बच्ची को लेकर घर चली गई, लेकिन 25 दिन बाद वह बीमार हो गई और उसने दूध पीना छोड़ दिया। परिजन उसे अमरोली के एक निजी अस्पताल लेकर गए जहां चिकित्सकों ने उसकी प्राथमिक जांच की, लेकिन तबीयत गंभीर होने के कारण उसे न्यू सिविल रेफर कर दिया। परिजन 30 जनवरी को बच्ची लेकर न्यू सिविल आए जहां चिकित्सकों ने उसे कोविड-19 एनआइसीयू वार्ड में उपचार शुरू किया। पिड्याट्रिक विभाग के न्यूनेटल यूनिट हेड डॉ.पन्ना पटेल, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अपूर्व शाह और डॉ. सुजीत चौधरी के देखरेख में इलाज शुरू किया गया। डॉ. अपूर्व ने बताया कि बच्ची का जन्म के समय वजन एक किलो 800 ग्राम था। भर्ती करने के दौरान उसका वजन घटकर 1.640 ग्राम रह गया था। बच्ची को सर्दी-खांसी के साथ सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उसकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। एक्स-रे में बच्ची की छाती में न्यूमोनिया बढ़ा हुआ था। उसका ऑक्सीजन लेवल भी घट गया था। 2डी इको में बच्ची को हृदय की बीमारी पीडीए होने का पता चला। चिकित्सकों ने बच्ची को सी-पेप मशीन के सपोर्ट पर भर्ती किया। इसके साथ ही आइवीआइजी इंजेक्शन, एन्टीबायोटिक समेत अन्य दवाई शुरू की गई। धीरे-धीरे बच्ची में सुधार आना शुरू हो गया। पिड्याट्रिक विभाग की अध्यक्षा डॉ. संगीता त्रिवेदी ने ‘राजस्थान पत्रिका’ को बताया कि अब बच्ची कोरोना से स्वस्थ हो गई है और उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। बच्ची का वजन बढक़र 1.750 ग्राम हो गया था। चिकित्सकों ने बताया कि मां पायल को नौ संतान थी। इसमें तीन बच्चे जन्म के एक-एक माह बाद किसी कारण से मौत हो गई। हाल में पांच बच्चे हैं और नवजात बच्ची उनकी छठी संतान है।
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क्या है इंट्राविनस इम्युनोग्लोबुलिन :
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क्या है इंट्राविनस इम्युनोग्लोबुलिन :
चिकित्सकों ने बताया कि मायस्थेनिया व मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन (एमआइएस-सी) जैसी क्रोनिक बीमारियों के इलाज में आइवीआइजी थेरेपी का पहले इस्तेमाल होता रहा हैं। इंट्राविनस इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन दिया जाता है। इंजेक्शन देने की पूरी प्रक्रिया को इंट्राविनस इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी कहते हैं। इसे कोरोना मरीजों के इलाज में कारगर पाया गया है। इसका कोई बड़ा साइड इफैक्ट नहीं मिला है। इससे कोरोना मरीजों में बुखार कम होने के साथ ऑक्सीजन के स्तर में भी तेजी से सुधार देखने को मिलता है। सांस की तकलीफ कम होती है।
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पिता ने छोड़ दी थी आस :
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पिता ने छोड़ दी थी आस :
चिकित्सकों ने बताया कि बच्ची के पिता दिनेश देवीपुजक मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते है। न्यू सिविल में 3-4 दिन भर्ती रहने के बाद दिनेश ने बच्ची के स्वस्थ होने की आस छोड़ दी थी। उन्होंने डॉक्टर से बच्ची को छुट्टी देने और घर ले जाने के लिए कहा। तब डॉक्टरों ने उन्हें समझाया, बच्ची की हालत गंभीर है। घर ले जाने से कुछ भी हो सकता है। यहां उसका बेहतर इलाज संभव है। इसके बाद दिनेश को हिम्मत आई और उसने इलाज जारी रखने कहा।