अकाउंट्स की एबीसीडी सीख प्रोसेसहाउस तक संभाला
मात्र 13 वर्ष की थी तब से ही शौक-शौक में पापा के गुड़ के हॉलसेल व्यवसाय के अकाउंट्स देखना शुरू किया था और आज एक हजार कर्मचारियों के प्रोसेस हाउस को संभालने वाली व्यावसायिक महिला बन गई

सूरत. आधी दुनिया, पूरी ताकत..., नारी तू नारायणी...जैसे कई सशक्त, समृद्ध व सम्मानजनक वाक्यों से अलंकृत नारी शक्ति यूं तो वर्षपर्यन्त पूजनीय व अनुकरणीय है, लेकिन विश्व महिला दिवस सरकारी-गैरसरकारी स्तर पर विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है। रविवार को भी देशभर में सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, शैक्षणिक समेत अन्य सभी क्षेत्रों में सक्रिय महिला वर्ग की प्रतिनिधियों को मंच पर स्थान मिलेगा। गुजरात की औद्योगिक राजधानी सूरत नगरी में भी ऐसी कई महिलाएं है जिन्होंने घर-गृहस्थी के अलावा अपने व्यापारिक कौशल से व्यावसायिक क्षेत्र में जगह सुनिश्चित की है।
पहले शौक फिर बन गया जुनुन
मात्र 13 वर्ष की थी तब से ही शौक-शौक में पापा के गुड़ के हॉलसेल व्यवसाय के अकाउंट्स देखना शुरू किया था और धीरे-धीरे पापा के सहयोग, प्रोत्साहन से इसी विषय को आगे की पढ़ाई के रूप में बीकॉम (ऑनर्स) तक अपनाया और आज एक हजार कर्मचारियों के प्रोसेस हाउस को संभालने वाली व्यावसायिक महिला बन गई। यहां बात झारखंड के टाटानगर की प्रिया अग्रवाल की हो रही है जो कि मूल राजस्थान के चिड़ावा कस्बे की है और नागोर जिले के ही जायल निवासी मनोज अग्रवाल से विवाह के बाद 1998 से सूरत में स्थायी है। पीहर में मां शारदादेवी बागड़ी व ससुराल में श्वसुर हंसराज अग्रवाल की विशेष देखरेख में अंकाउट्स की एबीसीडी अच्छे से सीखकर पति मनोज के प्रोसेसिंग व्यवसाय में उनके सहयोग से सहयोगी बनते हुए पिछले दस वर्षों से सचिन जीआईडीसी में शिखर प्रिंट्स प्रालि नामक प्रोसेस हाउस में सेल-परचेज, इनवर्ड-आउटवर्ड रजिस्टर, बैंकिंग आदि के कार्य को बखूबी देख रही है। इस कार्य को यूं समझा जाए तो बेहतर रहेगा कि प्रिया रोजाना करीब पौने तीन सौ कागज गहराई से चैक करती है और उसके काम-काज संभालने के कई फायदे भी संस्थान को मिल है। प्रिया बताती है कि सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में मिल में ही कार्यरत श्रमिकों समेत अन्य कर्मचारियों व उनके परिवार के हितार्थ नारी एकता संस्था का गठन कर सामाजिक कार्य की शुरुआत की और यह बदस्तूर जारी है।
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